Mai Toh Gyaras Ki Mahima Gaungi/मैं तो ग्यारस की महिमा गाऊंगी।



मैं तो ग्यारस का कीर्तन कराऊंगी,
सखी मेरे घर आना,
मैं तो ग्यारस का कीर्तन कराऊंगी,
सखी मेरे घर आना।।

भोले को बुलाऊंगी गौरा को बुलाऊंगी,
भोले को बुलाऊंगी गौरा को बुलाऊंगी,
गणपति जी को बुलाऊंगी सखी मेरे घर आना,
गणपति जी को बुलाऊंगी सखी मेरे घर आना,
मैं तो ग्यारस का कीर्तन कराऊंगी,
सखी मेरे घर आना,
मैं तो ग्यारस का कीर्तन कराऊंगी,
सखी मेरे घर आना।।

विष्णु को बुलाऊंगी लक्ष्मी को बुलाऊंगी,
विष्णु को बुलाऊंगी लक्ष्मी को बुलाऊंगी,
नारद जी को बुलाऊंगी सखी मेरे घर आना,
नारद जी को बुलाऊंगी सखी मेरे घर आना,
मैं तो ग्यारस का कीर्तन कराऊंगी,
सखी मेरे घर आना,
मैं तो ग्यारस का कीर्तन कराऊंगी,
सखी मेरे घर आना।।

ब्रह्मा को बुलाऊंगी ब्राह्मणी को बुलाऊंगी,
ब्रह्मा को बुलाऊंगी ब्राह्मणी को बुलाऊंगी,
इंदर जी को बुलाऊंगी सखी मेरे घर आना,
इंदर जी को बुलाऊंगी सखी मेरे घर आना,
मैं तो ग्यारस का कीर्तन कराऊंगी,
सखी मेरे घर आना,
मैं तो ग्यारस का कीर्तन कराऊंगी,
सखी मेरे घर आना।।

राम को बुलाऊंगी सीता को बुलाऊंगी,
राम को बुलाऊंगी सीता को बुलाऊंगी,
हनुमत जी को बुलाऊंगी सखी मेरे घर आना,
हनुमत जी को बुलाऊंगी सखी मेरे घर आना,
मैं तो ग्यारस का कीर्तन कराऊंगी,
सखी मेरे घर आना,
मैं तो ग्यारस का कीर्तन कराऊंगी,
सखी मेरे घर आना।।

कृष्णा को बुलाऊंगी राधा को बुलाऊंगी,
कृष्णा को बुलाऊंगी राधा को बुलाऊंगी,
रुक्मिणी जी को बुलाऊंगी सखी मेरे घर आना,
रुक्मिणी जी को बुलाऊंगी सखी मेरे घर आना,
मैं तो ग्यारस का कीर्तन कराऊंगी,
सखी मेरे घर आना,
मैं तो ग्यारस का कीर्तन कराऊंगी,
सखी मेरे घर आना।।

मईया को बुलाऊंगी लांगुर को बुलाऊंगी,
मईया को बुलाऊंगी लांगुर को बुलाऊंगी,
भैरों जी को बुलाऊंगी सखी मेरे घर आना,
भैरों जी को बुलाऊंगी सखी मेरे घर आना,
मैं तो ग्यारस का कीर्तन कराऊंगी,
सखी मेरे घर आना,
मैं तो ग्यारस का कीर्तन कराऊंगी,
सखी मेरे घर आना।।

संतों को बुलाऊंगी महंतों को बुलाऊंगी,
संतों को बुलाऊंगी महंतों को बुलाऊंगी,
भक्तों को संग में बुलाऊंगी सखी मेरे घर आना,
भक्तों को संग में बुलाऊंगी सखी मेरे घर आना,
मैं तो ग्यारस का कीर्तन कराऊंगी,
सखी मेरे घर आना,
मैं तो ग्यारस का कीर्तन कराऊंगी,
सखी मेरे घर आना।।

ढोलक लाना मंजीरा लाना,
ढोलक लाना मंजीरा लाना,
ग्यारस की महिमा गाऊंगी सखी मेरे घर आना,
ग्यारस की महिमा गाऊंगी सखी मेरे घर आना,
मैं तो ग्यारस का कीर्तन कराऊंगी,
सखी मेरे घर आना,
मैं तो ग्यारस का कीर्तन कराऊंगी,
सखी मेरे घर आना।।

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Skand Puran Ki Mahakal Ki Katha/ स्कन्द पुराण की महाकाल की कथा।



बहुत समय पहले की बात है। माटी नाम का एक बहुत बड़ा शिवभक्त था। माटी के कोई संतान नहीं थी। उसने संतान प्राप्ति के लिए 100 साल तक शिव जी का कठोर व्रत किया था। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने उसे संतान का वरदान दिया। कुछ समय बाद माटी की पत्नी गर्भवती हो गई। उसके गर्भवती होने के बाद भी चार साल तक उसकी पत्नी का प्रसव नहीं हुआ तो माटी को बहुत चिंता हुई। उसको पता चला कि उसकी पत्नी के गर्भ का बालक कलमार्ग नामक राक्षस के डर से बाहर ही नहीं निकल रहा है। तब माटी ने सोचा कि क्यों ना गर्भ में स्थित बालक को शिव ज्ञान दे दिया जाए। यह सोचकर उसने बालक को शिव ज्ञान देना शुरू किया जिसकी वजह से बालक को बोध हुआ और वह गर्भ से बाहर निकल आया।

माटी ने कालमार्ग से डरने के कारण अपने पुत्र का नाम कालभिति रखा। कालभिति जन्म से ही शिव जी के परम भक्त थे। बड़ा होते ही कालभिति शिवजी की घोर तपस्या में लग गए। बेल के वृक्ष के नीचे पैर के एक अंगूठे पर खड़े होकर वह सौ वर्ष तक पानी की एक भी बूंद पिए बिना मंत्रो का जाप करते रहे। सौ वर्ष पूरे होने पर एक दिन एक आदमी जल से भरा हुआ एक घड़ा लेकर आया। कालभिति को नमस्कार करने के बाद उसने कहा कि हे राजन! कृपाकर करके आप जल गृहण कीजिए।

कालभिति बोले कि पहले तो आप मुझे यह बताइए कि आप किस वर्ण के हैं? आपका आचार–व्यवहार कैसा है? यह सब जाने बिना मैं जल गृहण नहीं कर सकता। पानी लाने वाला व्यक्ति बोला कि मैं जब अपने माता–पिता को ही नहीं जानता हूं तो फिर अपने वर्ण के बारे में क्या कहूं? आचार–विचार और किसी धर्म से मेरा कोई वास्ता ही नहीं रहा है। कालभिति ने कहा कि मेरे गुरु के अनुसार जिसके कुल का ज्ञान ना हो उसका जल गृहण करने वाला तत्काल कष्ट में पड़ता है। इसलिए हे श्रीमन! मैं आपका लाया हुआ जल गृहण नहीं करूंगा। पानी लाने वाला व्यक्ति बोला कि मुझे तुम्हारी बात पर हंसी आती है। जब सब में भगवान शंकर ही निवास करते हैं तो किसी को भी बुरा नहीं कहना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से भगवान शिव जी की निन्दा होती है। यह जल अपवित्र कैसे हुआ? घड़ा मिट्टी से बना है और आग में पकाया गया है उसके बाद जल से भर दिया गया है। अगर मेरे छूने से जल अशुद्ध हो गया? तो अगर मैं अशुद्ध होकर इसी धरती पर हूं तो फिर आप यहां क्यों रहते हैं? आप आकाश में क्यों नहीं रहते? 

उस व्यक्ति की बात सुनकर कालभिति ने कहा कि सभी में शिव ही हैं, सबको शिव मानने वाले नास्तिक लोग खाना छोड़कर मिट्टी क्यों नहीं खाते? राख और धूल क्यों नहीं फांकते? मैं यह नहीं कह रहा कि सब में शिव नहीं हैं। भगवान शिव सब में ही हैं। आप मेरी बात ध्यान से सुनिए। सोने के गहने बहुत तरह के बनते हैं, कुछ शुद्ध सोने के तो कुछ मिलावटी होते हैं। खरे–खोटे सभी आभूषणों में सोना तो है ही। इसी तरह शुद्ध–अशुद्ध सब में भगवान शिव सदा विराजमान हैं। जैसे खोटा सोना खरे सोने के साथ मिलकर एक हो जाता है, उसी प्रकार से इस शरीर को भी व्रत, तपस्या और सदाचार के द्वारा शोधित करके शुद्ध बना लेने पर मनुष्य निश्चय ही खरा सोना बनकर स्वर्ग को जाता है।

इसलिए शरीर को खोटी अपवित्र चीजों से बिगाड़ना ठीक नहीं है। जो व्रत और उपवास करके शुद्ध हो गया है। वह भी यदि इस तरह अशुद्ध होने लगे तो थोड़े ही दिनों में पतित हो जाएगा। इसलिए आपका दिया हुआ पानी तो मैं कभी नहीं पियूंगा। कालभिति के ऐसा कहने पर वह व्यक्ति हंसने लगा। उसने दाहिने अंगूठे से जमीन खोदकर एक बहुत बड़ा गड्ढा बना दिया, फिर उस गड्ढे में सारा पानी ढुलका दिया। गड्ढा भर गया लेकिन पानी बचा रह गया। फिर उसने अपने पैर से ही कुरेद कर एक तालाब बना दिया और बचे हुए पानी से उस तालाब को भर दिया। यह अदभुत दृश्य देखकर कालभूति जरा भी नहीं चौंके।

वह व्यक्ति बोला हे ब्राह्मण देव! आप हैं तो मूर्ख, परंतु बातें आप पंडितों जैसी करते हैं। लगता है आपने कभी विद्वानों की बात नहीं सुनी है। कुआं दूसरे का, घड़ा दूसरे का और रस्सी दूसरे की है। एक पानी पिलाता है और एक पीता है। कालभिति ने विचार किया कि यदि एक कार्य करने में अनेक सहायक हों तो काम करने वाले को मिलने वाला फल बंटकर समान हो जाता है। बात तो इसकी ठीक है। कालभिति ने उस मनुष्य से कहा कि हे राजन ! आपका यह कहना ठीक है कि कुएं और तालाब का पानी पीने में कोई दोष नहीं है। फिर भी आपने तो अपने घड़े के जल से ही इस गड्ढे को भरा है। यह बात सामने से देखकर मैं हरगिज इस जल को नहीं पियूंगा। 

कालभिति के हठ पर वह व्यक्ति हंसता हुआ अंतर्ध्यान हो गया। यह देखकर कालभिति को बड़ा अचरज हुआ। वह सोचने लगा कि यह सब क्या है? उसी समय उस बेल के वृक्ष के नीचे धरती फाड़कर सुन्दर और चमचमाता हुआ शिवलिंग प्रकट हो गया। यह देखकर कालभिति कहने लगे कि जो पाप के काल हैं, जिनके कंठ में काला चिन्ह सुशोभित होता है। जो संसार के कालस्वरूप हैं, उन भगवान की मैं शरण लेता हूं, आप हमें शरण दीजिए। आपको बारम्बार नमस्कार है। कालभिति के इस प्रकार स्तुति करने पर महादेव जी उस लिंग से प्रकट हुए और बोले कि हे ब्राह्मण! तुमने इस तीर्थ में रहकर मेरी जिस प्रकार से आराधना की है, उससे मैं संतुष्ट हूं। अब कालमार्ग से तुम निर्भय रहो। मैं ही मनुष्य रूप में प्रकट हुआ था। मैंने यह गड्ढा और तालाब सब तीर्थों के जल से भरा है। यह परम पवित्र जल मैं तुम्हारे लिए ही लाया था। अब तुम मुझसे कोई भी मनोवांछित वर मांग सकते हो।

भगवान की बात सुनकर कालभिति ने कहा कि हे प्रभु! यदि आप मुझपर प्रसन्न हैं तो सदा के लिए यहां निवास करें। इस शिवलिंग पर जो भी दान अथवा पूजन किया जाए वह अक्षय हो। आपने मुझे काल से मुक्ति दिलाई है इसलिए यह शिवलिंग महाकाल के नाम से प्रसिद्ध हो। भगवान् बोले– जो मनुष्य अक्षय तृतीया, शिवरात्रि, श्रावण मास, चतुर्दशी, अष्टमी, सोमवार तथा विशेष पर्व के दिन इस सरोवर में स्नान करने के बाद इस शिवलिंग की पूजा करेगा वह शिव को ही प्राप्त होगा। यहां पर किया गया जप, तप, और रूद्र सब अक्षय होगा। तुम नंदी के साथ मेरे दूसरे द्वारपाल बनोगे। काल पर विजय पाने से तुम महाकाल से नाम से प्रसिद्ध होगे। शीघ्र ही राजर्षि कर्णधम यहां आयेंगे, उन्हें धर्म का उपदेश देकर तुम मेरे लोक में चले आओ। यह कहकर भगवान रूद्र उस लिंग में ही लीन हो गए।




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Aashadh Maas Mahatmaya Pahla Adhyay /आषाढ़ मास महात्म्य पहला अध्याय


बहुत समय पहले की बात है। एक छोटे से गांव गोकुलपुर में एक निर्धन किसान अपने परिवार के साथ बहुत गरीबी में अपना जीवनयापन करता था। उसका सबसे छोटा बेटा श्याम बचपन से ही भगवान श्री कृष्ण की भक्ति करता था। उसका मन खेलकूद में नहीं लगता था। जहां बच्चे पेड़ पर चढ़कर आम तोड़ते या नदी में तैरते, वहीं श्याम मन्दिर बैठकर घंटों भगवान की मूर्ति से बातें करता रहता था। जैसे बच्चे अपनी मां से बातें करते हैं वैसे ही श्याम भगवान से अपने दिल की सारी बातें करता था। बच्चे जैसे अपनी मां से रूठ जाते हैं वैसे ही वह श्री कृष्ण भगवान से रूठ जाता था और फिर उन्हें मनाता था। 

श्याम के इस तरह के व्यवहार के कारण कुछ लोग उसको पागल समझते थे और कुछ लोग सोचते थे कि अभी वह बच्चा है इसलिए ऐसी हरकतें करता है। श्याम किसी की बात पर ध्यान नहीं देता था उसका संसार बस मंदिर की वह छोटी सी मूर्ति थी जिसके साथ वह बातें करता था और उसके साथ खेलता था। वह सबसे कहता था कि मेरे कान्हा मुझसे बात करते हैं जो केवल मैं ही सुन सकता हूं बाकी लोग नहीं सुन सकते हैं। उसकी मां उसको काम करने के लिए कहती कि श्याम कभी खेती–बाड़ी में हाथ बंटा लिया कर, तुझे भगवान रोटी नहीं देंगे। परन्तु श्याम मुस्कुरा कर कहता कि अगर भगवान ने ब्रह्माण्ड बना सकते हैं तो मेरे लिए दो रोटी नहीं बना सकते। 

इस प्रकार समय बीतता गया और और श्याम भी अब बड़ा हो गया था। वह अभी भी कोई काम नहीं करता था और हर समय मन्दिर में ही पड़ा रहता था। श्याम के पिता को लम्बी बीमारी ने जकड़ लिया। उसके घर की हालत पहले से भी ज्यादा बद्तर हो गई थी। सारे खेत सूख गए थे और गायों ने भी दूध देना बन्द कर दिया था। घर का खर्च चलाना मुश्किल हो रहा था। श्याम की मां की आंखों में हर रात आंसू होते थे लेकिन श्याम के चेहरे पर वही विश्वास की चमक बनी रहती थी। एक दिन मां ने श्याम से पूछा कि हम सब दुःख में हैं और तू भगवान से इतना प्रेम करता है तो फिर वह तेरी मदद क्यों नहीं करते। तब श्याम ने धीरे से कहा कि हे मां! मदद हो रही है बस हमें उसको देखने की दृष्टि नहीं मिली है अभी। उसकी बात सुनकर मां चुप हो गई।

वह रोज की तरह मन्दिर गया लेकिन उस दिन कुछ अलग था। वह खाली हाथ था, मां के कहने पर वह भगवान का भोग लड्डू भी नहीं ला सका। फिर भी उसने भगवान से कहा कि आज कुछ भी नहीं है मेरे पास, लेकिन मैं तुझे अपना समय दूंगा, अपने आंसू दूंगा, तू चाहे तो उन्हें स्वीकार कर लेना। इतना कहकर वह मूर्ति के पास बैठकर धीरे–धीरे रोने लगा। रोते हुए भी उसकी आंखों में कोई शिकायत नहीं थी बस श्री कृष्ण के लिए प्रेम था। कुछ समय बाद उसकी मां को तेज बुखार हो गया, गांव के वैध ने देखकर बताया कि एक विशेष जड़ी–बूटी और दवा तुरंत चाहिए वरना मां की जान को खतरा हो सकता है। दवा की कीमत पच्चीस रुपए थी। श्याम के पास एक भी पैसा नहीं था। उसने गांव में सबसे मदद मांगी परन्तु किसी ने भी उसकी मदद नहीं की। श्याम निराश हो कर टूटे कदमों से मन्दिर पहुंचा और श्री कृष्ण की मूर्ति के आगे लेट गया। उसकी आंखे भरी हुई थीं और उसका हृदय भी बहुत व्याकुल था। उसने भगवान से कहा कि हे भगवान्! तू मेरा सखा है ना? मेरा भाई है ना? आज मेरी मां को बचा ले, तेरे चरणों में सबकुछ अर्पण है। 

श्याम ने कहा कि अगर मां को कुछ हो गया तो मैं भी नहीं बचूंगा। इस प्रकार थककर श्याम वहीं मूर्ति के आगे सो गया। अगली सुबह सूरज की किरण जब मन्दिर में पड़ी तो श्याम की नींद खुल गई। उसने देखा कि मन्दिर की सीढ़ियों पर एक छोटा कपड़े का थैला रखा है। श्याम ने धीरे से उस थैले को खोला तो उसमें पच्चीस रुपए रखे थे और एक छोटी सी पर्ची रखी थी। उस पर्ची पर लिखा था "श्याम मां को दवाई दे दो! तुम्हारा मुरलीधर; यह देखकर श्याम की आंखों से आंसू बहने लगे और वह दौड़कर वैद्य के पास गया और उनसे कहकर मां को दवाई दिलवाई। चमत्कारिक रूप से मां की तबियत कुछ ही देर में सुधरने लगी। वैद्य ने कहा कि श्याम यह तो भगवान की कृपा लगती है, इतनी जल्दी किसी को आराम नहीं आता। पूरे गांव में यह बात आग की तरह फैल गई। कुछ लोग श्रद्धा से भर गए तो कुछ लोग उल्टी बातें करने लगे। कुछ लोग श्याम पर इल्जाम लगाने लगे कि इसने मन्दिर से पैसा चोरी किया है और कहता है कि भगवान ने पैसा दिया है। 

श्याम किसी की भी बात का कोई जवाब नहीं देता था और नियमपूर्वक मन्दिर में जाकर श्री कृष्ण भगवान की भक्ति में लगा रहता था। वह पहले की ही तरह भगवान से बातें करता था जैसे कि कुछ हुआ ही ना हो। उसके विश्वास में जरा भी कमी नहीं आई थी। एक रात को तेज आंधी चलने लगी और आसमान में बिजली चमकने लगी। पूरे गांव में हड़कंप मच गया। मन्दिर की छत का एक हिस्सा टूटकर गिर गया। श्याम को जैसे ही मालूम हुआ वह भागता हुआ मन्दिर जा पहुंचा। उसने देखा कि श्री कृष्ण जी की मूर्ति पर मलबा गिरा है। यह देखकर श्याम घबरा गया और कांपते हाथों से मलबा हटाने लगा। मलबा हटाने के बाद वह मूर्ति से लिपटकर रोने लगा कि तू तो मेरा सखा है, मेरा सबकुछ है, तुझपर कुछ भी कैसे गिर सकता है। तूने तो मुझे हर बार बचाया है आज तुझको चोट आई, ये नहीं होना चाहिए था। ऐसा कहते हुए उसके आंखों से लगातार आंसू बहते जा रहे थे। 

देखते–देखते मन्दिर के अन्दर एक दिव्य प्रकाश फैल गया जिसको देखकर वहां पर मौजूद लोगों की आंखे चुंधिया गईं। श्याम ने जब अपनी आंखें खोली तो उसके सामने स्वयं भगवान श्री कृष्ण खड़े थे। पीतांबर पहने, सिर पर मोर मुकुट और हाथ में बांसुरी थी। श्याम को देखकर वो ऐसे मुस्कुरा रहे थे जैसे बरसों बाद किसी प्रियजन से मिलने आए हों। यह देखकर श्याम भौचक्का रह गया और रोता हुआ उनके चरणों में गिर गया। श्री कृष्ण भगवान ने उसे उठाकर अपने गले से लगा लिया और बोले कि श्याम तेरी भक्ति ने मुझे बांध लिया। तेरे प्रेम में ना तो दिखावा है, ना कोई मांग है बस समर्पण है। तू जब भूखा था तब भी तूने मुझसे कोई शिकायत नहीं की। जिस किसी ने भी तुझे बेइज्जत किया तूने उनको क्षमा कर दिया। तूने कभी भी मेरा साथ नहीं छोड़ा इसलिए अब मैं कभी तुझे अकेला नहीं छोडूंगा। यह सुनकर श्याम कुछ भी बोल नहीं पाया उसकी आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगी। श्री कृष्ण भगवान ने उसकी कलाई पर एक चांदी का कड़ा बांधा और कहा कि हे श्याम! जब भी तू मुझे याद करेगा मैं तेरे पास रहूंगा। चाहे तू मुझे देख सके या नहीं। इतना कहकर श्री कृष्ण भगवान अंतर्ध्यान हो गए। श्याम ने कभी कोई सांसारिक कार्य नहीं किया। वह मन्दिर में रहकर भगवान की सेवा करता, फूल चढ़ाता, दिया जलाता था और गांव वालों को प्रेम और विश्वास की शिक्षा देता था। अब वही लोग जो उसे चालाक और पागल कहकर उसका मजाक उड़ाते थे उसके चरणों में बैठकर पूछते थे कि श्याम हमें भी बताओ कि ऐसा प्रेम हम सबको कैसे मिले? 

उनकी बातें सुनकर श्याम कहता कि भगवान मूर्ति में नहीं हमारे प्रेम में बंधे होते हैं। अगर उनको सच्चे दिल से पुकारोगे तो वे दौड़े चले आएंगे। श्याम की यह कथा धीरे–धीरे दूसरे गांवों तक पहुंचने लगी। साधु–संत भी उस गांव में आकर रहने लगे और उस मन्दिर में बैठकर ध्यान करने लगे। अब तो वह मन्दिर श्याम धाम कहलाने लगा। कहा जाता है कि आज भी वहां हर रात्रि को मधुर बांसुरी की आवाज आती है और मन्दिर में कोई अदृश्य प्रकाश दिखता है। श्याम ने अपने जीवन के अंतिम दिनों तक भक्ति की ही सांस ली। कहते हैं कि जब उसकी अंतिम सांसे चल रही थीं तो उसने बस इतना कहा कि कन्हैया मैं आ रहा हूं और मुस्कुराते हुए अपनी आंखें बंद कर लीं। यह एक कथा नहीं है आस्था है। यह कथा विश्वास की की। शक्ति है। जिसे श्याम ने जिया और श्री कृष्ण जी ने निभाया। 
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Sasu Ji Kaise Karun Shukriya, Karun Shukriya/ सासू जी कैसे करूं शुक्रिया करूं शुक्रिया।


सासू जी कैसे करूं शुक्रिया, करूं शुक्रिया,
प्यारा सा घर बार तुमने दिया,
प्यारा सा घर बार तुमने दिया,
सासू जी कैसे करूं शुक्रिया, करूं शुक्रिया,
प्यारा सा घर बार तुमने दिया,
प्यारा सा घर बार तुमने दिया।।

मम्मी के जैसी सासू मिली हैं,
पापा जैसे ससुर मिले हैं,
पापा जैसे ससुर मिले हैं,
मम्मी के जैसी सासू मिली हैं,
पापा जैसे ससुर मिले हैं,
पापा जैसे ससुर मिले हैं,
प्यार बेटी वाला है हमसे किया, हां हमसे किया,
प्यारा सा घर बार तुमने दिया,
प्यारा सा घर बार तुमने दिया,
प्यार बेटी वाला है हमसे किया, हां हमसे किया,
प्यारा सा घर बार तुमने दिया,
प्यारा सा घर बार तुमने दिया,
सासू जी कैसे करूं शुक्रिया, करूं शुक्रिया,
प्यारा सा घर बार तुमने दिया,
प्यारा सा घर बार तुमने दिया।।

भाभी के जैसी जेठनी मिली हैं,
भईया जैसे जेठ मिले हैं,
भईया जैसे जेठ मिले हैं,
भाभी के जैसी जेठनी मिली हैं,
भईया जैसे जेठ मिले हैं,
भईया जैसे जेठ मिले हैं,
प्यार बहनों वाला है हमसे किया, हां हमसे किया,
प्यारा सा घर बार तुमने दिया,
प्यारा सा घर बार तुमने दिया,
प्यार बहनों वाला है हमसे किया, हां हमसे किया,
प्यारा सा घर बार तुमने दिया,
प्यारा सा घर बार तुमने दिया,
सासू जी कैसे करूं शुक्रिया, करूं शुक्रिया,
प्यारा सा घर बार तुमने दिया,
प्यारा सा घर बार तुमने दिया।।

बहना के जैसी ननदी मिली हैं,
जीजा जैसे ननदोई मिले हैं,
जीजा जैसे ननदोई मिले हैं,
बहना के जैसी ननदी मिली हैं,
जीजा जैसे ननदोई मिले हैं,
जीजा जैसे ननदोई मिले हैं,
प्यार बहना वाला है हमसे किया, हां हमसे किया,
प्यारा सा घर बार तुमने दिया,
प्यारा सा घर बार तुमने दिया,
प्यार बहना वाला है हमसे किया, हां हमसे किया,
प्यारा सा घर बार तुमने दिया,
प्यारा सा घर बार तुमने दिया,
सासू जी कैसे करूं शुक्रिया, करूं शुक्रिया,
प्यारा सा घर बार तुमने दिया,
प्यारा सा घर बार तुमने दिया,
सासू जी कैसे करूं शुक्रिया, करूं शुक्रिया,
प्यारा सा घर बार तुमने दिया,
प्यारा सा घर बार तुमने दिया।।
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Kaise karu mammi guzara saas mujhe pagal batati hai/कैसे करूं मम्मी गुजारा सास मुझे पागल बताती है।


कैसे करूं मम्मी गुजारा,
सास मुझे पागल बताती है,
कैसे करूं मम्मी गुजारा, 
सास मुझे पागल बताती है।।

कुर्सी पे बैठूं तो मैडम बतावे,
कुर्सी पे बैठूं तो मैडम बतावे,
मम्मी चढ़कर बैठूं खाट,
सास मुझे अम्मा बताती है,
मम्मी चढ़कर बैठूं खाट,
सास मुझे अम्मा बताती है,
कैसे करूं मम्मी गुजारा,
सास मुझे पागल बताती है,
कैसे करूं मम्मी गुजारा, 
सास मुझे पागल बताती है।।

धीरे धीरे चलूं तो कछुआ बतावे,
धीरे धीरे चलूं तो कछुआ बतावे,
मम्मी चलूं तेज की चाल,
सास मुझे घोड़ी बताती है,
मम्मी चलूं तेज की चाल,
सास मुझे घोड़ी बताती है,
कैसे करूं मम्मी गुजारा,
सास मुझे पागल बताती है,
कैसे करूं मम्मी गुजारा, 
सास मुझे पागल बताती है।।

धीरे धीरे बोलूं तो गूंगी बतावे,
धीरे धीरे बोलूं तो गूंगी बतावे,
मम्मी बोलूं तेज के बोल,
सास स्पीकर बताती है,
मम्मी बोलूं तेज के बोल,
सास स्पीकर बताती है,
कैसे करूं मम्मी गुजारा,
सास मुझे पागल बताती है,
कैसे करूं मम्मी गुजारा, 
सास मुझे पागल बताती है।।

पतली रोटी बेलूं तो पापड़ बतावे,
पतली रोटी बेलूं तो पापड़ बतावे,
मम्मी बेलूं मोटी रोटी,
सास उसे कडा बताती है 
मम्मी बेलूं मोटी रोटी,
सास उसे कडा बताती है,
कैसे करूं मम्मी गुजारा,
सास मुझे पागल बताती है,
कैसे करूं मम्मी गुजारा, 
सास मुझे पागल बताती है।।
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Sasu Charno Mein Apne Basa Lo Mujhe/ सासू चरणों में अपने बसा लो मुझे।



सासू चरणों में अपने बसा लो मुझे,
सासू चरणों में अपने बसा लो मुझे,
अपनी बगिया का फूल बना लो मुझे,
अपनी बगिया का फूल बना लो मुझे,
सासू चरणों में अपने बसा लो मुझे,
सासू चरणों में अपने बसा लो मुझे,
अपनी बगिया का फूल बना लो मुझे,
अपनी बगिया का फूल बना लो मुझे।।

जब विदा हो चली मां ये कहने लगीं 
अपनी सासू को मम्मी समझना सदा,
जब विदा हो चली मां ये कहने लगीं 
अपनी सासू को मम्मी समझना सदा,
मां की तरह गले से लगा लो मुझे,
मां की तरह गले से लगा लो मुझे,
अपनी बगिया का फूल बना लो मुझे,
अपनी बगिया का फूल बना लो मुझे,
सासू चरणों में अपने बसा लो मुझे,
सासू चरणों में अपने बसा लो मुझे,
अपनी बगिया का फूल बना लो मुझे,
अपनी बगिया का फूल बना लो मुझे।।

जब विदा हो चली भाभी कहने लगीं,
अपनी जिठनी को भाभी समझना सदा,
जब विदा हो चली भाभी कहने लगीं,
अपनी जिठनी को भाभी समझना सदा,
जिठनी अब तो गले से लगा लो मुझे,
जिठनी अब तो गले से लगा लो मुझे,
अपनी बगिया का फूल बना लो मुझे,
अपनी बगिया का फूल बना लो मुझे,
सासू चरणों में अपने बसा लो मुझे,
सासू चरणों में अपने बसा लो मुझे,
अपनी बगिया का फूल बना लो मुझे,
अपनी बगिया का फूल बना लो मुझे।।

जब विदा हो चली बहना कहने लगी,
अपनी ननदी को बहना समझना सदा,
जब विदा हो चली बहना कहने लगी,
अपनी ननदी को बहना समझना सदा,
दीदी अब तो गले से लगा लो मुझे,
दीदी अब तो गले से लगा लो मुझे,
अपनी बगिया का फूल बना लो मुझे,
अपनी बगिया का फूल बना लो मुझे,
सासू चरणों में अपने बसा लो मुझे,
सासू चरणों में अपने बसा लो मुझे,
अपनी बगिया का फूल बना लो मुझे,
अपनी बगिया का फूल बना लो मुझे।।

जब विदा हो चली भईया कहने लगे,
अपने देवर को भाई समझना सदा,
जब विदा हो चली भईया कहने लगे,
अपने देवर को भाई समझना सदा,
भइया की तरह बहना समझ लो मुझे,
भइया की तरह बहना समझ लो मुझे,
अपनी बगिया का फूल बना लो मुझे,
अपनी बगिया का फूल बना लो मुझे,
सासू चरणों में अपने बसा लो मुझे,
सासू चरणों में अपने बसा लो मुझे,
अपनी बगिया का फूल बना लो मुझे,
अपनी बगिया का फूल बना लो मुझे।।


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Sasu Ghar Mein Nai Mai Bahu Aapki/ सासू घर में नई मैं बहू आपकी।


सासू घर में नई मैं बहू आपकी,
सासू घर में नई मैं बहू आपकी,
चाहोगी मुझको जैसा मैं बन जाऊंगी,
चाहोगी मुझको जैसा मैं बन जाऊंगी,
सासू घर में नई मैं बहू आपकी,
चाहोगी मुझको जैसा मैं बन जाऊंगी।।

जो भी बतलाओगी वही जानूंगी मैं,
जो भी सिखलाओगी वही मानूंगी मैं,
जो भी बतलाओगी वही जानूंगी मैं,
जो भी सिखलाओगी वही मानूंगी मैं,
आपके रंग में मैं भी रंग जाऊंगी,
आपके रंग में मैं भी रंग जाऊंगी,
चाहोगी मुझको जैसा मैं बन जाऊंगी,
चाहोगी मुझको जैसा मैं बन जाऊंगी,
सासू घर में नई मैं बहू आपकी,
सासू घर में नई मैं बहू आपकी,
चाहोगी मुझको जैसा मैं बन जाऊंगी,
चाहोगी मुझको जैसा मैं बन जाऊंगी।।

धर्म नारी के सारे निभाऊंगी मैं,
प्यार से सबको अपना बनाऊंगी मैं,
धर्म नारी के सारे निभाऊंगी मैं,
प्यार से सबको अपना बनाऊंगी मैं,
आप जैसे रखोगी मैं रह जाऊंगी,
आप जैसे रखोगी मैं रह जाऊंगी,
चाहोगी मुझको जैसा मैं बन जाऊंगी,
चाहोगी मुझको जैसा मैं बन जाऊंगी,
सासू घर में नई मैं बहू आपकी,
सासू घर में नई मैं बहू आपकी,
चाहोगी मुझको जैसा मैं बन जाऊंगी,
चाहोगी मुझको जैसा मैं बन जाऊंगी।।

आपका मुझको आशीष मिल जाएगा,
आगे खुशियों का रस्ता भी खुल जाएगा,
आपका मुझको आशीष मिल जाएगा,
आगे खुशियों का रस्ता भी खुल जाएगा,
आपके ढंग में मैं भी ढल जाऊंगी,
आपके ढंग में मैं भी ढल जाऊंगी,
चाहोगी मुझको जैसा मैं बन जाऊंगी,
चाहोगी मुझको जैसा मैं बन जाऊंगी,
सासू घर में नई मैं बहू आपकी,
सासू घर में नई मैं बहू आपकी,
चाहोगी मुझको जैसा मैं बन जाऊंगी,
चाहोगी मुझको जैसा मैं बन जाऊंगी।।

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Aai Ho Sasural Bahu Jara Dheere Se Pag Rakhna/आई हो ससुराल बहू जरा धीरे से पग रखना।


आई हो ससुराल बहू जरा धीरे से पग रखना,
आई हो ससुराल बहू जरा धीरे से पग रखना।।

अपने ससुर को पिता समझना,
अपने ससुर को पिता समझना,
देंगे पिता सा प्यार बहू जरा धीरे से पग रखना,
देंगे पिता सा प्यार बहू जरा धीरे से पग रखना,
आई हो ससुराल बहू जरा धीरे से पग रखना,
आई हो ससुराल बहू जरा धीरे से पग रखना।।

अपनी सास को माता समझना,
अपनी सास को माता समझना,
देंगी वो मां सा प्यार बहू जरा धीरे से पग रखना,
देंगी वो मां सा प्यार बहू जरा धीरे से पग रखना,
आई हो ससुराल बहू जरा धीरे से पग रखना,
आई हो ससुराल बहू जरा धीरे से पग रखना।।

अपनी ननद को बहना समझना,
अपनी ननद को बहना समझना,
देंगी बहन सा दुलार बहू जरा धीरे से पग रखना,
देंगी बहन सा दुलार बहू जरा धीरे से पग रखना,
आई हो ससुराल बहू जरा धीरे से पग रखना,
आई हो ससुराल बहू जरा धीरे से पग रखना।।

अपने देवर को भईया समझना,
अपने देवर को भईया समझना,
देंगे भईया सा प्यार बहू जरा धीरे से पग रखना,
देंगे भईया सा प्यार बहू जरा धीरे से पग रखना,
आई हो ससुराल बहू जरा धीरे से पग रखना,
आई हो ससुराल बहू जरा धीरे से पग रखना।।
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Ram Naam Ki Chabi Aisi Har Tale Ko Khol De/राम नाम की चाबी ऐसी हर ताले को खोल दे।


राम नाम की चाबी ऐसी हर ताले को खोल दे,
राम नाम की चाबी ऐसी हर ताले को खोल दे,
काम बनेंगे बिगड़े सारे जय श्री राम बोल दे,
काम बनेंगे बिगड़े सारे जय श्री राम बोल दे,
राम नाम की चाबी ऐसी हर ताले को खोल दे,
काम बनेंगे बिगड़े सारे जय श्री राम बोल दे।।

पत्थर की थी एक शिला जो कब से पड़ी थी राहों में,
पत्थर की थी एक शिला जो कब से पड़ी थी राहों में,
चरण कमल छू नार बनी वो प्रभु उठाए बाहों में,
चरण कमल छू नार बनी वो प्रभु उठाए बाहों में,
जनम जनम के कर्म हमारे वो एक पल में तोल दे,
जनम जनम के कर्म हमारे वो एक पल में तोल दे,
काम बनेंगे बिगड़े सारे जय श्री राम बोल दे,
काम बनेंगे बिगड़े सारे जय श्री राम बोल दे,
राम नाम की चाबी ऐसी हर ताले को खोल दे,
राम नाम की चाबी ऐसी हर ताले को खोल दे,
काम बनेंगे बिगड़े सारे जय श्री राम बोल दे,
काम बनेंगे बिगड़े सारे जय श्री राम बोल दे।।

पार करा के नदिया केवट लखन सिया रघुराज को,
पार करा के नदिया केवट लखन सिया रघुराज को,
जान गया वो कृपा सिंधु के छुपे हुए अंदाज को,
जान गया वो कृपा सिंधु के छुपे हुए अंदाज को,
प्रेम के बदले दीन दयाला द्वार मोक्ष के खोल दे,
प्रेम के बदले दीन दयाला द्वार मोक्ष के खोल दे,
काम बनेंगे बिगड़े सारे जय श्री राम बोल दे,
काम बनेंगे बिगड़े सारे जय श्री राम बोल दे,
राम नाम की चाबी ऐसी हर ताले को खोल दे,
राम नाम की चाबी ऐसी हर ताले को खोल दे,
काम बनेंगे बिगड़े सारे जय श्री राम बोल दे,
काम बनेंगे बिगड़े सारे जय श्री राम बोल दे।।

सबरी व्याकुल थी दर्शन को बेर तोड़ के लाती थी,
सबरी व्याकुल थी दर्शन को बेर तोड़ के लाती थी,
मीठे मीठे रखे बावड़ी खट्टे खुद खा जाती थी,
मीठे मीठे रखे बावड़ी खट्टे खुद खा जाती थी,
खाके जूठे बेर भक्त को निज दर्शन अनमोल दे,
खाके जूठे बेर भक्त को निज दर्शन अनमोल दे,
काम बनेंगे बिगड़े सारे जय श्री राम बोल दे,
काम बनेंगे बिगड़े सारे जय श्री राम बोल दे,
राम नाम की चाबी ऐसी हर ताले को खोल दे,
राम नाम की चाबी ऐसी हर ताले को खोल दे,
काम बनेंगे बिगड़े सारे जय श्री राम बोल दे,
काम बनेंगे बिगड़े सारे जय श्री राम बोल दे।।

राम विमुख हैं जो प्राणी यहां दर दर ठोकर खाते हैं,
राम विमुख हैं जो प्राणी यहां दर दर ठोकर खाते हैं,
महिमा ऐसी राम नाम से पत्थर भी तर जाते हैं,
महिमा ऐसी राम नाम से पत्थर भी तर जाते हैं,
भक्त कहें प्रभु राम नाम की मिसरी कानों में घोल दे,
भक्त कहें प्रभु राम नाम की मिसरी कानों में घोल दे,
काम बनेंगे बिगड़े सारे जय श्री राम बोल दे,
काम बनेंगे बिगड़े सारे जय श्री राम बोल दे,
राम नाम की चाबी ऐसी हर ताले को खोल दे,
राम नाम की चाबी ऐसी हर ताले को खोल दे,
काम बनेंगे बिगड़े सारे जय श्री राम बोल दे,
काम बनेंगे बिगड़े सारे जय श्री राम बोल दे।।


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Haal Sasural ka koi na pucho /हाल ससुराल का कोई ना पूछो।


तर्ज/बेवफा तेरा मासूम चेहरा भूल जाने के काबिल नहीं है।

हाल ससुराल का कोई ना पूछो,
हाल ससुराल का कोई ना पूछो,
एक दिन भी निभाना कठिन है, कठिन है,
एक दिन भी निभाना कठिन है,
हाल ससुराल का कोई ना पूछो,
हाल ससुराल का कोई ना पूछो,
एक दिन भी निभाना कठिन है, कठिन है,
एक दिन भी निभाना कठिन है।।

मेरे ससुरा बड़े सीधे साधे, 
मेरे ससुरा बड़े सीधे साधे, 
उनसे कोई शिकायत नहीं है, नहीं है,
उनसे कोई शिकायत नहीं है,
मेरी सासू के नखरे ना पूछो,
मेरी सासू के नखरे ना पूछो,
उनके संग में निभाना कठिन है, कठिन है,
उनके संग में निभाना कठिन है,
हाल ससुराल का कोई ना पूछो,
हाल ससुराल का कोई ना पूछो,
एक दिन भी निभाना कठिन है, कठिन है,
एक दिन भी निभाना कठिन है।।

मेरे जेठ बड़े सीधे साधे,
मेरे जेठ बड़े सीधे साधे,
उनसे कोई शिकायत नहीं है, नहीं है,
उनसे कोई शिकायत नहीं है,
मेरी जिठनी के नखरे ना पूछो,
मेरी जिठनी के नखरे ना पूछो,
उनके संग पार पाना कठिन है, कठिन है,
उनके संग पार पाना कठिन है,
हाल ससुराल का कोई ना पूछो,
हाल ससुराल का कोई ना पूछो,
एक दिन भी निभाना कठिन है, कठिन है,
एक दिन भी निभाना कठिन है।।

मेरे देवर बड़े सीधे साधे,
मेरे देवर बड़े सीधे साधे,
उनसे कोई शिकायत नहीं है, नहीं है,
उनसे कोई शिकायत नहीं है,
मेरी छोटी के नखरे ना पूछो,
मेरी छोटी के नखरे ना पूछो,
उसके संग में निभाना कठिन है, कठिन है,
उनके संग में निभाना कठिन है,
हाल ससुराल का कोई ना पूछो,
हाल ससुराल का कोई ना पूछो,
एक दिन भी निभाना कठिन है, कठिन है,
एक दिन भी निभाना कठिन है।।

मेरे ननदोई बड़े सीधे साधे,
मेरे ननदोई बड़े सीधे साधे,
उनसे कोई शिकायत नहीं है, नहीं है,
उनसे कोई शिकायत नहीं है,
मेरी ननदी के नखरे ना पूछो,
मेरी ननदी के नखरे ना पूछो,
उसके संग में तो रहना कठिन है, कठिन है,
उनके संग में तो रहना कठिन है,
हाल ससुराल का कोई ना पूछो,
हाल ससुराल का कोई ना पूछो,
एक दिन भी निभाना कठिन है, कठिन है,
एक दिन भी निभाना कठिन है।।


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