Margsheesh Maas Ki Ganesh Chaturthi Vrat Katha

मार्गशीर्ष मास की गणेश चतुर्थी व्रत कथा।

एक समय की बात है। पार्वती जी ने श्री गणेश जी से प्रश्न किया कि अगहन मास की कृष्ण चतुर्थी संकटा कहलाती है, उस दिन गणेश की पूजा किस प्रकार से करनी चाहिए? इसपर गणेश जी ने बताया कि हे हिमालयनंदिनी! अगहन मास में पूर्वोक्त रीति से गजानन नामक गणेश जी की पूजा करनी चाहिए। पूजा के बाद अर्ध्य देना चाहिए। दिन भर व्रत रखकर पूजा के बाद ब्राह्मण को भोजन कराकर जौ, तिल, चावल, चीनी और घृत का शाकला बनाकर हवन कराना चाहिए। इस विधि से पूजा और हवन करने से वह अपने शत्रु को भी वशीभूत कर सकता है।  इस संबंध में मैं आपको एक प्राचीन कथा सुनाता हूं आप ध्यान से सुनिए! 

प्राचीन काल की बात है, त्रेता युग में राजा हुए थे जिनका नाम दशरथ था। राजा दशरथ को शिकार करने का बहुत शौक था। एक बार राजा दशरथ शिकार के लिए वन में गए थे जहां पर अनजाने में उनके हाथों श्रवण कुमार नामक ब्राह्मण का वध हो गया। श्रवण कुमार के माता–पिता अंधे थे, उन्होंने राजा दशरथ को श्राप दिया कि जिस प्रकार हम लोग पुत्र वियोग में मर रहे हैं उसी प्रकार तुम्हारा निधन भी पुत्र शोक में ही होगा। उनके श्राप को सुनकर राजा दशरथ को बहुत चिन्ता हुई। उन्होंने पुत्रेष्टि यज्ञ कराया। उसके फलस्वरूप जगदीश्वर श्री राम ने चतुर्भुज रूप में अवतार लिया। भगवती लक्ष्मी, जानकी के रूप में अवतरित हुईं। पिता की आज्ञा पाकर भगवान राम ने सीता और लक्ष्मण के साथ वन में खरदूषण आदि राक्षसों का वध किया। इससे क्रोधित होकर रावण ने वन में जाकर सीताजी का अपहरण कर लिया। 

सीताजी के वियोग में भगवान श्री राम ने पंचवटी का त्याग कर दिया और ऋष्यमूक पर्वत पर पहुंच कर सुग्रीव के साथ दोस्ती की और उसके बाद सीता जी की खोज के लिए हनुमान आदि वानर तत्पर हुए। सीता जी को ढूंढते–ढूंढते वानरों ने गिद्धराज संपाती को देखा। इन वानरों को देखकर संपाती ने पूछा कि तुम लोग कौन हो? और इस वन में कैसे आए हो ? संपाती की बात सुनकर वानरों ने उत्तर दिया कि हे गिद्धराज! भगवान विष्णु जी के अवतार दशरथ नन्दन श्री राम जी, सीता जी और लक्ष्मण जी के साथ दंडकवन में आए हैं। वहां से उनकी अर्द्धांगिनी सीता जी का अपहरण कर लिया गया है। हे मित्र! हम लोग नहीं जानते कि माता सीता कहां हैं? उन लोगों की बात सुनकर संपाती ने कहा कि तुम सब भगवान श्री राम जी के सेवक होने के नाते मेरे मित्र हो। माता सीता का जिसने हरण किया है और वह जिस स्थान पर हैं वह मुझे मालूम है। 

गिद्धराज संपाती ने कहा कि माता सीता के लिए मेरा छोटा भाई जटायु अपने प्राण गंवा चुका है। भगवान श्री रामचन्द्र जी के चरण कमल का स्मरण करके मेरे भाई नेअपना शरीर त्यागा है। यहां से थोड़ी दूर पर एक समुन्द्र है और समुन्द्र के उस पार लंका नगरी है। जहां पर शीशम के पेड़ के नीचे माता सीता जी बैठी हैं। रावण द्वारा अपहृत माता सीता जी मुझे दिखाई दे रही हैं। गिद्धराज संपाती ने कहा कि केवल हनुमान जी ही अपने पराक्रम से समुन्द्र लांघ सकते हैं अतः उन्हें वहां जाना चाहिए। संपाती की बात सुनकर हनुमानजी ने पूछा कि हे संपाती! इस दुस्तर समुन्द्र को मैं किस प्रकार पार कर सकता हूं? हनुमान जी की बात सुनकर संपाती ने उत्तर दिया कि हे मित्र! आप संकटनाशक गणेश चतुर्थी का व्रत कीजिए। उस व्रत के प्रभाव से और अपने पराक्रम से आप श्रणमात्र में समुन्द्र को पार कर लेंगे। गिद्धराज संपाती की बात सुनकर हनुमानजी ने संकट चतुर्थी के उत्तम व्रत को किया। हे देवी! इसके प्रभाव से हनुमान जी श्रणभर में समुन्द्र को लांघ गए। इस लोक में इस व्रत के समान सुखदायक कोई दूसरा व्रत नहीं है।

जो मनुष्य संकट चतुर्थी का व्रत पूरी श्रद्धा और विश्वाश के साथ करता है उसके सारे मनोरथ पूर्ण होते हैं। 
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Darwaza Khula Chod Aai Neend Ke Maare.

दरवाजा खुला छोड़ आई नींद के मारे।

दरवाजा खुला छोड़ आई नींद के मारे,
दरवाजा खुला छोड़ आई नींद के मारे,
दरवाजा खुला छोड़ आई नींद के मारे,
दरवाजा खुला छोड़ आई नींद के मारे।।

रात मेरी मैया ने टीका मांगा,
रात मेरी मैया ने टीका मांगा,
टीका मांगा हां टीका मांगा,
टीका मांगा हां टीका मांगा,
रात मेरी मैया ने टीका मांगा,
मैं बिंदिया लगाये आई नींद के मारे,
मैं बिंदिया लगाये आई नींद के मारे,
दरवाजा खुला छोड़ आई नींद के मारे,
दरवाजा खुला छोड़ आई नींद के मारे।।

रात मेरी मैया नथनी मांगी,
रात मेरी मैया नथनी मांगी,
नथनी मांगी हां नथनी मांगी,
नथनी मांगी हां नथनी मांगी,
मैं कुण्डल पहनाए आई नींद के मारे,
मैं कुण्डल पहनाए आई नींद के मारे,
दरवाजा खुला छोड़ आई नींद के मारे,
दरवाजा खुला छोड़ आई नींद के मारे।।

रात मेरी मैया ने चूड़ियां मांगी,
रात मेरी मैया ने चूड़ियां मांगी,
चूड़ियां मांगी हां चूड़ियां मांगी,
चूड़ियां मांगी हां चूड़ियां मांगी,
मैं मेंहदी लगाए आई नींद के मारे,
मैं मेंहदी लगाए आई नींद के मारे,
दरवाजा खुला छोड़ आई नींद के मारे,
दरवाजा खुला छोड़ आई नींद के मारे।।

रात मेरी मैया ने बिछुवे मांगे,
रात मेरी मैया ने बिछुवे मांगे,
बिछुवे मांगे हां बिछुवे मांगे,
बिछुवे मांगे हां बिछुवे मांगे,
मैं पायल पहनाए आई नींद के मारे,
मैं पायल पहनाए आई नींद के मारे,
दरवाजा खुला छोड़ आई नींद के मारे,
दरवाजा खुला छोड़ आई नींद के मारे।।

रात मेरी मैया ने लंहगा मांगा,
रात मेरी मैया ने लंहगा मांगा,
लंहगा मांगा हां लंहगा मांगा,
लंहगा मांगा हां लंहगा मांगा,
मैं चूनर ओढ़ाए आई नींद के मारे,
मैं चूनर ओढ़ाए आई नींद के मारे,
दरवाजा खुला छोड़ आई नींद के मारे,
दरवाजा खुला छोड़ आई नींद के मारे,
दरवाजा खुला छोड़ आई नींद के मारे,
दरवाजा खुला छोड़ आई नींद के मारे।।





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Maiya Ghar Mein Aana Re

मैया घर में आना रे।


मैया घर में आना रे, आके फिर ना जाना रे,
दम दमा दम दम,
मैया घर में आना रे, आके फिर ना जाना रे,
दम दमा दम दम,
गौरा बनके आना रे, काली बनके आना रे,
दम दमा दम दम,
गौरा बनके आना रे, काली बनके आना रे,
दम दमा दम दम,
मैया घर में आना रे, आके फिर ना जाना रे,
दम दमा दम दम।।
मैया घर में आना रे, आके फिर ना जाना रे,
दम दमा दम दम।।

तेरा दीदार होगा, मेरा उद्धार होगा,
तेरा दीदार होगा, मेरा उद्धार होगा,
हृदय में ममता होगी, आंखों में प्यार होगा,
हृदय में ममता होगी, आंखों में प्यार होगा,
खुशी–खुशी गायेंगे हम गीत सुहाना रे,
खुशी–खुशी गायेंगे हम गीत सुहाना रे,
मैया घर में आना रे, आके फिर ना जाना रे,
दम दमा दम दम।।
मैया घर में आना रे, आके फिर ना जाना रे,
दम दमा दम दम।।

माथे पे बेंदी होगी, फूलों का हार होगा,
माथे पे बेंदी होगी, फूलों का हार होगा,
गोटे की चुनरी होगी, रेशम का तार होगा,
गोटे की चुनरी होगी, रेशम का तार होगा,
लाई हूं खाली झोली भर के जाना रे,
लाई हूं खाली झोली भर के जाना रे,
मैया घर में आना रे, आके फिर ना जाना रे,
दम दमा दम दम।।
मैया घर में आना रे, आके फिर ना जाना रे,
दम दमा दम दम।।

होंठों पे लाली होगी, आंखों में काजल होगा,
होंठों पे लाली होगी, आंखों में काजल होगा,
पैरों में पायल होगी, हाथों में कंगना होगा,
पैरों में पायल होगी, हाथों में कंगना होगा,
जग में भवन है तेरा रूप सुहाना रे,
जग में भवन है तेरा रूप सुहाना रे,
मैया घर में आना रे, आके फिर ना जाना रे,
दम दमा दम दम,
मैया घर में आना रे, आके फिर ना जाना रे,
दम दमा दम दम,
गौरा बनके आना रे, काली बनके आना रे,
दम दमा दम दम,
गौरा बनके आना रे, काली बनके आना रे,
दम दमा दम दम,
मैया घर में आना रे, आके फिर ना जाना रे,
दम दमा दम दम।।
मैया घर में आना रे, आके फिर ना जाना रे,
दम दमा दम दम।।

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Kartik Maas Mahatmya Katha Chatha Adhyay

कार्तिक मास माहात्म्य कथा छठा अध्याय।

नारद जी बोले: जब दो घड़ी रात बाकी रहे तब तुलसी की मृत्तिका, वस्त्र और कलश लेकर जलाशय पर जाएं। कार्तिक में प्रत्येक जलाशय के जल में स्नान करना चाहिए। गर्म जल की अपेक्षा ठंडे जल में स्नान करने से दस गुना पुण्य मिलता है। उससे सौ गुना पुण्य बाहरी कुएं के जल में स्नान करने से होता है। उससे अधिक पुण्य बावड़ी में और उससे भी अधिक पुण्य पोखर में स्नान करने से होता है। उससे दस गुना झरनों में और उससे भी अधिक पुण्य कार्तिक मास में नदी स्नान करने से मिलता है। उससे भी अधिक पुण्य वहां स्नान करने से मिलता है जहां दो नदियों का संगम हो। स्नान से पहले भगवान का ध्यान करके स्नान का संकल्प करना चाहिए। फिर तीर्थ में उपस्थित देवताओं को क्रमशः अर्ध्य, आचमन आदि देना चाहिए।

अर्ध्य मन्त्र इस प्रकार हैं: हे कमलनाथ! आपको नमस्कार है, हे जलशायी भगवान! आपको प्रणाम है, हे ऋषिकेश! आपको नमस्कार है। मेरे दिए अर्ध्य को आप ग्रहण करें। वैकुंठ, प्रयाग तथा बद्रिकाश्रम में जहां कहीं भगवान विष्णु गए, वहां उन्होंने तीन प्रकार से अपना पांव रखा था। वहां पर ऋषि वेद यज्ञों सहित सभी देवता मेरी रक्षा करते रहें। हे जनार्दन! हे दामोदर! हे देवेश! आपको प्रसन्न करने हेतु मैं कार्तिक मास में विधि–विधान से ब्रह्ममुहुर्त में स्नान कर रहा हूं। आपकी कृपा से मेरे सभी पापों का नाश हो। हे प्रभो! कार्तिक मास में व्रत तथा विधिपूर्वक स्नान करने वाला मैं अर्ध्य देता हूं, आप राधिका सहित ग्रहण करें। हे कृष्ण! हे बलशायी राक्षसों का संहार करने वाले भगवन्! हे पापों का नाश! कार्तिक मास में प्रतिदिन दिए हुए मेरे इस अर्ध्य द्वारा कार्तिक स्नान का व्रत करने वाला फल मुझे प्राप्त हो।

तत्पश्चात विष्णु जी शिव जी तथा सूर्य भगवान का ध्यान करके जल में प्रवेश कर नाभि के बराबर जल में खड़े होकर विधिपूर्वक स्नान करना चाहिए। गृहस्थों को तिल और आंवले का चूर्ण लगाकर तथा विधवा स्त्री व यती को तुलसी की जड़ की मिट्टी लगाकर स्नान करना चाहिए। सप्तमी, अमावस्या, नवमी, त्रयोदशी, द्वितीया, दशमी आदि तिथियों को आंवला तथा तिल से स्नान करना वर्जित है। स्नान करते हुए निम्न शब्दों का उच्चारण करना चाहिए, जिस भक्तिभाव से भगवान ने देवताओं के कार्य के लिए तीन प्रकार का रूप धारण किया था, वही पापों का नाश करने वाले भगवान श्री विष्णु मुझे अपनी कृपा से पवित्र बनाइए। जो मनुष्य भगवान श्री विष्णु जी की आज्ञा से कार्तिक व्रत करता है, उसकी इन्द्रादि सभी देवता रक्षा करते हैं। इसलिए वह मुझे पवित्र करें। बीजों, रहस्यों तथा यज्ञों सहित वेदों के मंत्र कश्यप आदि ऋषि, इन्द्रादि देवता मुझे पवित्र करें। अदिति आदि सभी नारियां, यज्ञ, सिद्ध, सर्प और समस्त औषधियां व तीनों लोकों के पहाड़ मुझे पवित्र करें।

इस प्रकार कहकर स्नान करने के बाद मनुष्य को हाथ में पवित्री धारण कर के देवता, ऋषि, मनुष्यों तथा पितरों का विधिपूर्वक तर्पण करना चाहिए। तर्पण करते समय तर्पण में जितने तिल रहते हैं, उतने वर्ष पर्यन्त व्रती के पर पितृगण स्वर्ग में वास करते हैं। उसके बाद व्रती को जल से निकलकर शुद्ध वस्त्र धारण करने चाहिए। सभी तीर्थों के सारे कार्यों से निवृत होकर पुनः भगवान श्री हरि विष्णु का पूजन करना चाहिए। सभी तीर्थों के सारे देवताओं का स्मरण करके भक्तिपूर्वक सावधान हो कर चन्दन, फूल और फलों के साथ भगवान विष्णु को फिर से अर्ध्य देना चाहिए। अर्ध्य के मंत्र इस प्रकार हैं; मैने पवित्र कार्तिक मास में स्नान किया है, हे विष्णु! राधा के साथ आप मेरे दिए अर्ध्य को ग्रहण करें।

तत्पश्चात चंदन, फूल और ताम्बुल आदि से वेदपाठी ब्राह्मणों का श्रद्धापूर्वक पूजन करें और बारम्बार नमस्कार करें। ब्राह्मणों के दाएं पांव में तीर्थों का वास होता है, मुंह में वेद और समस्त अंगों में देवताओं का वास होता है। अपने कल्याण की इच्छा रखने वाले मनुष्य को इनका न तो अपमान करना चाहिए और न ही इनका किसी प्रकार का विरोध करना चाहिए। फिर एकाग्रचित्त होकर भगवान श्री विष्णु जी की प्रिय तुलसी जी की पूजा करनी चाहिए। उनकी परिक्रमा करके उनको प्रणाम करना चाहिए। हे देवि! हे तुलसी माता! देवताओं ने ही प्राचीन काल से तुम्हारा निर्माण किया है और ऋषियों ने तुम्हारी पूजा की है। हे विष्णुप्रिया तुलसी! आपको नमस्कार है। कृपा कर आप मेरे समस्त पापों को नष्ट करो। 

इस प्रकार को मनुष्य भक्तिपूर्वक कार्तिक मास में व्रत का अनुष्ठान करते हैं, वे संसार में सभी सुखों को भोगते हुए अन्त में मोक्ष को प्राप्त होते हैं।


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Kartik Maas Mahatmya Katha Panchwan Adhyay.

कार्तिक मास माहात्म्य कथा पांचवां अध्याय।


राजा पृथु ने कहा: हे नारद जी! आपने कार्तिक मास में स्नान का फल बताया, अब अन्य मासों में विधिपूर्वक स्नान करने की विधि था तथा उद्यापन की विधि भी बताइए। देवर्षि नारद जी ने कहा: हे राजन्! आप भगवान विष्णु जी के अंश से उत्पन्न हुए हैं अतः यह बात आपको ज्ञात ही है फिर भी मैं आपको यथाचित विधान बताता हूं। 

आश्विन माह में शुक्लपक्ष की एकादशी से कार्तिक के व्रत करने चाहिए। ब्रह्ममुहुर्त में उठकर जल का लोटा लेकर गांव से बाहर पूर्व अथवा उत्तर की दिशा में जाना चाहिए। उसके बाद जो व्यक्ति मुख शुद्ध नहीं करता उसे किसी भी मंत्र का फल प्राप्त नहीं होता है। अतः दांत और जीभ को पूर्ण रूप से शुद्ध करना चाहिए, और निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए दातुन तोड़नी चाहिए।  हे वनस्पत्ये! आप मुझे आयु, कीर्ति, तेज, प्रज्ञा, पशु, संपत्ति, महाज्ञान, बुद्धि और विद्या प्रदान करो। इस प्रकार उच्चारण करके वृक्ष से बारह अंगुल की दातुन लें, दूध वाले वृक्षों से दांतुन नहीं लेनी चाहिए। इसी प्रकार कपास, कांटेदार वृक्ष तथा जले हुए वृक्ष से भी दांतुन लेना मना है। जिससे उत्तम गंध आती हो और जिसकी टहनी कोमल हो, ऐसे ही वृक्ष से दंतधावन गृहण करना चाहिए।

प्रतिपदा, अमावस्या, नवमी, छठी, रविवार को, चन्द्र तथा सूर्यग्रहण को दांतुन नहीं करनी चाहिए। तत्पश्चात भली–भांति स्नान कर के फूलमाला, चन्दन और पान आदि पूजा की सामग्री लेकर प्रसन्नचित होकर शिवालय में जा कर सभी देवी–देवताओं की अर्घ्य, आचमनीय आदि वस्तुओं से पृथक – पृथक पूजा करके प्रार्थना करके प्रणाम करना चाहिए, उसके बाद भक्तों के साथ मिलकर श्री हरि विष्णु जी का कीर्तन करना चाहिए। मन्दिर में जो गायक श्री हरि विष्णु जी का कीर्तन करने के लिए आए हों उनकी माला, चन्दन, ताम्बुल आदि से पूजन करना चाहिए, क्योंकि देवालयों में भगवान श्री विष्णु जी को अपनी तपस्या, योग और दान द्वारा प्रसन्न किया जाता था परन्तु कलयुग में भगवद गुणगान को ही भगवान श्री विष्णु जी को प्रसन्न करने का एकमात्र साधन माना गया है। 

नारद जी ने राजा पृथु से कहा: हे राजन्! एक बार मैंने भगवान श्री हरि विष्णु जी से पूछा कि हे प्रभु! आप सबसे अधिक कहां निवास करते हैं? इसका उत्तर देते हुए भगवान श्री विष्णु ने कहा: हे नारद! मैं बैकुंठ या योगियों के हृदय में ही निवास करता हूं अपितु जहां मेरे भक्त मेरा कीर्तन करते हैं, मैं वहां अवश्य निवास करता हूं। जो मनुष्य चन्दन, माला आदि से मेरे भक्तों का पूजन करते हैं उनसे मेरी ऐसी प्रीति होती है जैसी कि मेरे पूजन से भी नहीं हो सकती है। नारद जी बोले: शिरीष, धतूरा, गिरजा, चमेली, केसर, कन्दार और कटहल के फूलों व चावलों से भगवान श्री विष्णु जी की पूजा करनी चाहिए। अढ़हल, कंद, गिरीष, जूही, मालती और केवड़ा के पुष्पों से भगवान शंकर जी की पूजा करनी चाहिए। जिन देवताओं की पूजा में जो फूल निर्दिष्ट हैं उन्हीं फूलों से उनका पूजन करना चाहिए। पूजा समाप्ति पर भगवान से क्षमा प्रार्थना करनी चाहिए।

जैसे: हे सुरेश्वर, हे देव! ना मैं मंत्र जानता हूं, ना क्रिया, मैं भक्ति से भी हीन हूं, मैंने जो कुछ भी आपकी पूजा की है उसे पूरा करें। ऐसी प्रार्थना करने के बाद साष्टांग प्रणाम करके भगवद गुणगान करना चाहिए। भगवान श्री हरि विष्णु जी की कथा सुननी चाहिए। उसके बाद प्रसाद ग्रहण करना चाहिए। जो मनुष्य उपरोक्त विधि के अनुसार कार्तिक व्रत का पालन करते हैं वह इस जग में अनन्त सुखों को भोगते हुए अन्त में बैकुंठ धाम को जाते हैं।
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