आवंला नवमी व्रत कथा:
पूरे उत्तर व मध्य भारत में आवंला नवमी का खास महत्व है। महिलाएं संतान प्राप्ति और उसकी मंगलकामना के लिए यह व्रत पूरी निष्ठा के साथ करती हैं। आइए आंवला नवमी की कथा और पूजा विधि के बारे में जानते हैं।
काशी नगर में एक धर्मात्मा वैश्य रहता था। उसके कोई संतान नहीं थी। एक दिन वैश्य की पत्नी से एक पड़ोसन बोली यदि तुम किसी पराए लड़के की बलि भैरव के नाम से चढ़ा दो तो तुम्हें पुत्र प्राप्त होगा। यह बात जब वैश्य को पता चली तो उसने मना कर दिया। परंतु उसकी पत्नी मौके की तलाश में लगी रही। एक दिन एक कन्या को उसने कुएं में गिराकर भैरो देवता के नाम पर बलि दे दी, इस हत्या का परिणाम विपरीत हुआ। लाभ की जगह उसके पूरे बदन में कोढ़ हो गया तथा लड़की की आत्मा उसे सताने लगी। वैश्य के पूछने पर उसकी पत्नी ने सारी बात बता दी।
इस पर वैश्य बोला कि ब्राह्मण वध तथा बाल वध करने वाले के लिए इस संसार में कहीं जगह नहीं है। इसलिए तू गंगा नदी पर जाकर भगवान का भजन कर तथा गंगा में स्नान कर तभी तुझे इस पाप और कष्ट से छुटकारा मिल सकता है। वैश्य की पत्नी पश्चाताप करने लगी और रोग से मुक्ति पाने के लिए मां गंगा की शरण में गई। तब गंगा ने उसे कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आंवला के वृक्ष की पूजा कर आंवले का सेवन करने की सलाह दी। जिस पर महिला ने गंगा माता के बताए अनुसार इस तिथि को आंवला वृक्ष का पूजन कर आंवला गृहण किया था और वह रोगमुक्त हो गई थी। इस व्रत व पूजन के प्रभाव से कुछ दिनों बाद उसे संतान की प्राप्ति हुई। तभी से इस व्रत को करने का प्रचलन शुरू हुआ। तब से लेकर आज तक यह परम्परा चली आ रही है।
आंवला नवमी के दिन नहाने के पानी में आंवले का रस मिलाकर नहाएं, ऐसा करने से आपके आस–पास जितनी भी नकरात्मक ऊर्जा होगी वह समाप्त हो जाएगी। सकारात्मकता और पवित्रता में वृद्धि होगी। फिर आंवले के पेड़ और देवी लक्ष्मी का पूजन करें।
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