हंसों का जोड़ा बहुत खूबसूरत था और हंसों की खूबसूरती देख सेठ के पुत्र हंसों की तारीफ करने लगे, यह बात कौवे को अच्छी नहीं लगी, वह मन ही मन हंसों से ईर्ष्या करने लगा। हंसों से ईर्ष्या करते हुए वह हंसों में से जो ज्यादा ताकतवर हंस प्रतीत हुआ उसके पास गया। हंसों के पास जाकर कौवा बोला तुम केवल खूबसूरती में मुझसे अच्छे हो सकते हो लेकिन ताकत में मैं तुमसे ज्यादा ताकतव हूं मैं तुम्हारे साथ उड़ने की प्रतियोगिता करना चाहता हूं। हंसों ने कौवे को समझाया कि वह उनके साथ उड़ने की प्रतियोगिता नहीं कर सकता, क्योंकि वे आसमान में बहुत दूर–दूर तक उड़ते हैं। उनके साथ प्रतियोगिता करने से उसे कोई लाभ नहीं है, वह उनके साथ प्रतियोगिता करके अपनी जान जोखिम में ना डाले। हंस की बात सुनकर कौवा गर्व से बोला मैंने उड़ने की कई सारी कलाएं सीखी हैं अपनी सीखी प्रत्येक कला से मैं लगभग सौ योजन साल उड़ान भर सकता हूं, तुम मेरी नहीं अपनी चिंता करो। क्या तुम मेरी बराबरी कर पाओगे? हंस कौवे की बात सुनकर मुस्कुराया! और बोला, मित्र हो सकता है कि तुम उड़ने की कई सारी कलाएं जानते होगे, लेकिन मैं तो सिर्फ एक कला जानता हूं जिससे सभी पक्षी उड़ते हैं और मैं उसी कला से उड़ान भरूंगा। हंस की बात सुनकर कौवे का अभिमान और बढ़ गया, वह बोला हंस तुमने जीवन में उड़ने की ज्यादा कलाएं नहीं सीखी हैं इसीलिए मैं तुम्हे आसानी से हरा दूंगा। तुम हार देखने के लिए तैयार हो जाओ! उसकी बातें सुनकर कई पक्षी इस प्रतियोगिता को देखने के लिए वहां जमा हो गए।
सभी पक्षियों के सामने हंस और कौवा दोनों समुंद्र की ओर उड़े। पक्षियों को देखकर कौवा कई तरह की कलाबाजियां दिखाता हुआ आसमान में उड़ने लगा, और देखते ही देखते हंस से आगे निकल गया। हंस अभी भी हमेशा की तरह अपनी सामान्य गति से उड़ रहा था। यह देखकर वहां उपस्थिति कई सारे कौवे प्रसन्नता व्यक्त करने लगे। कुछ ही देर में कौवे के पंख थकने लगे। वह विश्राम करने के लिए अपने आसपास पेड़ की डालियों को खोजने लगा, लेकिन विशाल समुंद में वह काफी आगे निकल आया था। उसे अपने आसपास सिर्फ पानी ही पानी नजर आ रहा था। इतने समय में हंस उड़ता हुआ कौवे से आगे निकल गया। कौवे की गति काफी धीमी हो गई थी। थकान के कारण अब उसके पंखों ने भी जवाब देना शुरू कर दिया था, अब कौवा पानी के सबसे करीब उड़ने लगा। कौवे के पैर अब पानी में डूबने लगे थे।
कौवे को डूबता देख हंस कौवे के करीब आया और बोला मित्र! तुम्हारे पैर और पंख बार–बार पानी में डूब रहे हैं, यह तुम्हारी कौन सी कला है। हंस की बात सुनकर कौवा बड़ी ग्लानि के साथ बोला! मित्र मुझे माफ कर दो, हम कौवे सिर्फ कांव–कांव करना जानते हैं। हम भला इतनी ऊंची उड़ान कैसे भर सकते हैं। मुझे अपनी गलती का अहसास हो गया है हे! मित्र मुझ पर दया करो, मैं डूबने वाला हूं कृपा कर मेरे प्राण बचा लो। जल में डूबते हुए अचेत कौवे को देखकर हंस को दया आ गई उसने कौवे को अपने पैरों में पकड़ कर समुंद्र के किनारे छोड़ दिया।
शीर्षक
इस कहानी का शीर्षक यही है कि अपने ऊपर ज्यादा घमंड नहीं करना चाहिए।