योगिनी एकादशी
योगिनी एकादशी का व्रत आषाढ़ मास में कृष्ण पक्ष की एकादशी को किया जाता है। इस व्रत में श्री हरि विष्णु जी की पूजा की जाती है। भगवान नारायण की मूर्ति को स्नान कराके भोग लगाते हुए पुष्प, धूप, दीप से आरती करनी चाहिए। गरीब ब्राह्मणों को दान देना चाहिए। इस एकादशी के प्रभाव से पीपल का वृक्ष काटने से उत्पन्न पाप नष्ट हो जाते हैं और अन्त में स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है।
योगिनी एकादशी व्रत की कथा
एक समय की बात है जब अल्कापुरी में राजा कुबेर के यहाँ एक हेम नाम का माली कार्य करता था। राजा कुबेर शिव के परम भक्त थे। हेममाली भगवान शंकर की पूजा के लिये नित्य मानसरोवर से फूल लाया करता था। एक दिन वह कामोन्मत्त होकर अपनी स्त्री के साथ स्वच्छन्द विहार करने के कारण फूल लाने में देरी कर बैठा। उधर हेममाली की राह देखते-देखते जब राजा कुबेर को बहुत देर हो गई तो उन्होंने क्रोधपूर्वक अपने सेवकों को आज्ञा दी कि तुम लोग जाकर पता लगाओ कि हेममाली अभी तक पुष्प लेकर क्यों नहीं आया। जब सेवकों ने उसका पता लगा लिया तो राजा के पास जाकर बताया- हे राजन! वह हेममाली अपनी स्त्री के साथ रमण कर रहा है। इस बात को सुन राजा कुबेर ने हेममाली को बुलाने की आज्ञा दी। डर से काँपता हुआ हेममाली राजा के सामने उपस्थित हुआ। उसे देखकर कुबेर को अत्यन्त क्रोध आया और गुस्से से उनके होंठ फड़फड़ाने लगे।
राजा ने कहा– अरे अधर्मी! तूने मेरे परम पूजनीय देवों के भी देव भगवान शिवजी का अपमान किया है। मैं तुझे श्राप देता हूँ कि तू स्त्री के वियोग में तड़पे और तू मृत्यु लोक का जीवन व्यतीत करे। कुबेर के श्राप से वह तत्काल स्वर्ग से पृथ्वी पर आ गिरा और कोढ़ी हो गया। उसकी स्त्री भी उससे बिछड़ गई। मृत्युलोक में आकर उसने अनेक भयंकर कष्ट भोगे, किन्तु शिव की कृपा से उसकी बुद्धि मलिन न हुई और उसे पूर्व जन्म की भी सुध रही। अनेक कष्टों को भोगता हुआ तथा अपने पूर्व जन्म के कुकर्मों को याद करता हुआ वह हिमालय पर्वत की तरफ चल पड़ा।
चलते-चलते वह मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में जा पहुँचा। वह ऋषि अत्यन्त वृद्ध तपस्वी थे। वह दूसरे ब्रह्मा के समान प्रतीत हो रहे थे और उनका वह आश्रम ब्रह्मा की सभा के समान शोभा दे रहा था। ऋषि को देखकर हेममाली वहाँ गया और उन्हें प्रणाम करके उनके चरणों में गिर पड़ा। हेममाली को देखकर मार्कण्डेय ऋषि ने कहा! तूने कौन-से निकृष्ट कर्म किये हैं, जिससे तू कोढ़ी हुआ और भयानक कष्ट भोग रहा है।
महर्षि की बात सुनकर हेममाली बोला– हे मुनिश्रेष्ठ! मैं राजा कुबेर का अनुचर था । मेरा नाम हेममाली है। मैं प्रतिदिन मानसरोवर से फूल लाकर शिव पूजा के समय कुबेर को दिया करता था। एक दिन पत्नी सहवास के सुख में फंस जाने के कारण मुझे समय का ज्ञान ही नहीं रहा और दोपहर तक पुष्प न पहुँचा सका। तब उन्होंने मुझे शाप श्राप दिया कि तू अपनी स्त्री का वियोग और मृत्युलोक में जाकर कोढ़ी बनकर दुख भोग। इस कारण मैं कोढ़ी हो गया हूँ तथा पृथ्वी पर आकर भयंकर कष्ट भोग रहा हूँ, अतः कृपा करके आप कोई ऐसा उपाय बताइए जिससे मेरी मुक्ति हो सके। मार्कण्डेय ऋषि ने कहा– हे हेममाली! तूने मेरे सम्मुख सत्य वचन कहे हैं इसलिए मैं तुझे तेरे उद्धार के लिए एक व्रत बताता हूं। ऋषि ने कहा कि यदि तू आषाढ़ मास में कृष्ण पक्ष की योगिनी एकादशी व्रत को विधिपूर्वक करेगा तो तेरे सारे पाप नष्ट हो जाएंगे।
यह सुनकर हेममाली ने अत्यंत प्रसन्न होकर मुनि को प्रणाम किया। मुनि ने उसे प्रेम के साथ उठाया। उसके बाद हेममाली ने मुनि के कहे अनुसार विधिपूर्वक योगिनी एकादशी का व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से वह अपने पुराने रूप में आकर वह अपनी स्त्री के साथ सुखपूर्वक रहने लगा।
योगिनी एकादशी का व्रत 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर फल देता है। इस व्रत को करने से व्यक्ति के समस्त पाप दूर हो जाते हैं, और अंत में स्वर्ग को प्राप्त होता है।
बोलो श्री हरि विष्णु जी की जय 🙏