Mor Aur Morni Ki Kahani

मोर और मोरनी की कहानी




बहुत समय पहले की बात है। किसी जंगल में एक मोर और मोरनी रहा करते थे। मोर और मोरनी बहुत ही हंसी खुशी अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे। मोर और मोरनी को किसी भी बात की कोई चिन्ता नहीं थी। ऐसे ही साथ रहते बहुत समय बीत जाता है। एक दिन मोरनी, मोर से कहती है कि हे प्रिये! मुझे लगता है कि हम लोगों को अब कहीं और चलकर रहना चाहिए।

मोरनी के मुंह से इस तरह की बात सुनकर मोर चौंक जाता है और उससे पूछता है कि ऐसा क्या हो गया जिसकी वजह से तुम जंगल छोड़कर चलने की बात कर रही हो? हमें तो यहां कोई परेशानी भी नहीं है। इस पर मोरनी कहती है कि मैं अब इस जंगल में नहीं रहना चाहती हूं मुझे अपने समाज के लोगों के साथ रहना है और उनके साथ ही अपना आगे का जीवन व्यतीत करना है। 

मोर, मोरनी को कहता है कि जहां हमारे समाज के लोग रहते हैं वो जगह हम दोनों के लिए ठीक नहीं है। मोर कहता है कि अगर हम वहां जायेंगे तो उनके साथ रोज हमारे लड़ाई झगड़े होंगे और हम सुखी जीवन नहीं बिता पायेंगे। लेकिन मोरनी जिद करने लगती है तो मोर को उसकी बात माननी पड़ती है। मोर, मोरनी को लेकर जंगल के पास के एक नगर में जाता है। उस नगर का नाम कुशीनगर था। उस नगर का राजा पशु पक्षियों की भाषा को बड़ी आसानी से समझ लेता था। राजा ने करा शास्त्र का अध्यन किया था इसलिए उसे पशु पक्षियों और जानवरों की बोली समझ आती थी। वो सारे जानवरों की बातें सुनकर उनका मतलब समझ लेता था।


मोर और मोरनी राजा के महल के पास ही रहने लगते हैं।एक दिन की बात है राजा को बहुत भूख लगी थी तो उसने रानी से कहा कि हे रानी! मुझे बहुत ही जोर की भूख लगी है कृपा करके मुझे भोजन करा दीजिए। राजा की बात सुनकर रानी कई प्रकार के व्यंजन बनाती है और राजा को देने के लिए एक हाथ में थाली और दूसरे हाथ में पानी का लोटा भर कर जाती है। रानी जब थाली रखती है तो थाली में से एक टुकड़ा चावल का जमीन पर गिर जाता है। वहीं पर कुछ चींटिया घूम रही होती हैं। एक चींटी चावल के टुकड़े को उठाकर वहां से जाने लगती है, राजा ये सब बहुत ध्यान से देख रहा होता है। चींटी जब चावल का दाना लेकर जाती है उसी समय एक बड़ा सा चींटा वहां पर आता है और चींटी से कहता है कि ये चावल का दाना मुझे दे दो और अपने लिए दूसरा दाना राजा की थाली से ले आओ। 

राजा चींटा और चींटी की बात सुन रहा होता है उसे तो पता ही चल जाता है कि वो दोनों क्या बातें कर रहे हैं। चींटी, चींटे से कहती है कि मैं दूसरा दाना लेने नहीं जाऊंगी अगर राजा ने मुझे चावल का दाना चुराते देख लिया तो मुझे मृत्युदंड दे देंगे। परन्तु चींटा कहता है कि ऐसा कुछ नहीं होगा तुम जाओ और मेरे लिए दूसरा दाना लेकर आओ। चींटी ना चाहते हुए भी चावल लेने के लिए राजा की थाली की तरफ बढ़ती है, लेकिन आधे रास्ते से ही वापस लौट आती है। चींटा कहता है कि जाओ दाना लेकर आओ, चींटी कहती है कि मैं नहीं जाऊंगी तुम अपने आप ही जाकर ले आओ। इस प्रकार चींटा और चींटी दोनों में बहस होने लगती है। राजा को यह देखकर हंसी आ जाती है। तभी चींटा राजा को देखता है और उसे समझ आ जाता है कि राजा को उनकी भाषा समझ में आ रही है।

चींटा, चींटी से कहता है कि देखो राजा हमारी तरफ देख रहा है। राजा ने हमारी बातों को सुन लिया है और मुझे लगता है कि उन्हें हमारी भाषा समझनी आती है। चींटी यह सुनकर डर जाती है तब चींटा कहता है कि तुम परेशान ना हो, अगर राजा ने हमारी बातों को समझ लिया है तो कोई बात नहीं, लेकिन अगर राजा किसी को यह बात बतायेगा तो पत्थर का हो जायेगा। इतने में रानी भी राजा को हंसते हुए देख लेती है और सोचती है कि कहीं मुझसे कोई गलती तो नहीं हो गई जो राजा साहब इस तरह से हंस रहे हैं। रानी, राजा से उनके हंसने का कारण पूछती है लेकिन राजा कहता है कि कोई बात नहीं है वो बस ऐसे ही हंस रहे थे। रानी कहती है कि आप मुझे प्यार नहीं करते इसीलिए मुझे बता नहीं रहे हैं। 
राजा, रानी को कहता है कि वो उससे हंसने का कारण ना पूछे वरना उसे पछताना पड़ेगा। रानी कहती है कि जरूर कोई बड़ी बात है, अब तो आपको वो बात मुझे बतानी ही पड़ेगी। राजा हर तरह से रानी को समझाता है लेकिन रानी उसकी बात नहीं मानती है। तब राजा कहता है कि तुम्हे वो बात जानने के लिए मेरे साथ दूर जंगल में चलना पड़ेगा। रानी कहती है कि ठीक है और राजा के साथ बहुत दूर जंगल में एकान्त स्थान पर आ जाती है। राजा जैसे–जैसे रानी को सारी बात बताता है तो वह पत्थर का होने लगता है। राजा आधा पत्थर का हो जाता है तो रानी से कहता है कि अभी भी समय है मान जाओ, परन्तु रानी कहती है कि थोड़ी बात है पूरी कह दो। राजा उसकी बात मानकर उसको सारी बात बता देता है, बात पूरी होते ही राजा का पूरा शरीर पत्थर का हो जाता है। रानी को अब अपने जिद करने पर बहुत पछतावा होता है और वो जोर–जोर से रोने लगती है।

तभी वहां मोर और मोरनी का जोड़ा भी आ गया। मोर और मोरनी ने रानी को रोते देखा तो उनसे रोने का कारण पूछने लगे, उनके पूछने पर रानी ने पूरी बात बता दी और रानी भी पत्थर की हो गई। यह देखकर मोर और मोरनी बहुत ज्यादा डर गए कि यह बात जिस किसी को यह बात पता चलेगी वो पत्थर का हो जायेगा। मोर, मोरनी से कहता है कि चलो हम इन चींटा और चींटियों को मार डालते हैं जब ये नहीं रहेंगे तो हमारे ऊपर कोई संकट नहीं आएगा तभी से मोर और मोरनी जब भी चींटी को देखते उनको मारने और खाने लगते। अब चींटियां बहुत परेशान हो गई तो उन्होंने नारायण का सहारा लिया। उन्होंने नारायण से प्रार्थना की कि उनकी रक्षा करें। नारायण ने कहा कि मैं तुम्हे वरदान देता हूं कि आज से तुम धरती के अन्दर रहोगे। नारायण उन्हे वरदान देकर चले जाते हैं।

चींटियां धरती के अन्दर ही रहने लगती हैं लेकिन जब भी वो भोजन की तलाश में अपने बिल से बाहर निकलतीं तो मोर और मोरनी उन्हें मार डालते। चींटिया भूख से तड़पने लगीं तो उन्होनें फिर से नारायण से प्रार्थना की कि वे उनकी रक्षा करें। नारायण आए और उन्होंने उनको दो वरदान दिए! पहला वरदान कि जो भी तुमको खायेगा उसकी चमड़ी फट जायेगी। दूसरा वरदान कि तुम्हे भूख प्यास की जरूरत नहीं होगी तुम्हारा पेट दो हिस्सों में बंट जाएगा। नारायण उनके पेट में गांठ लगा देते हैं और चींटियां खुश हो जाती हैं। लेकिन वो नारायण जी से कहती हैं कि प्रभु आप उन मोर और मोरनी को समझा दीजिए कि वे हमको और ना सताएं और हमें खाना और मारना बंद कर दें। नारायण उनकी बात सुनकर मोर और मोरनी के पास जाते हैं और उनसे चींटियों को मारने और खाने के लिए मना करते हैं। उस पर मोर कहता है कि आप चींटियों को दंड दीजिए उनकी वजह से राजा और रानी पत्थर के हो गए। श्री हरि विष्णु कहते हैं कि चींटियों का कोई दोष नहीं है सारा दोष राजा का था। राजा ने भाषा सीखने का गलत उपयोग किया था। वो बहुत पापी था। मोर कहता है कि रानी का क्या दोष था तब नारायण समझाते हैं कि रानी का भी बराबर का दोष था वो राजा को कोई भी गलत काम करने से मना नहीं करती थी। उनके साथ जो भी हुआ वो उनके कर्मों का फल है।

मोर पूछता है कि जो हम लोग किसी को चींटा और चींटी की बात बताएंगे तो हम भी पत्थर के हो जाएंगे। श्री हरि विष्णु जी कहते हैं कि वो श्राप अब समाप्त हो चुका है। मोर यह सुनकर खुश हो कर अपने पंख फैलाकर नाचने लगता है। तभी मोर की नजर अपने पैरों पर पड़ती है तो वह दुखी हो जाता है, क्योंकि चींटा और चींटी को मारकर खाने की वजह से उनके पैर फट गए थे और बदसूरत हो जाते हैं। थोड़ी देर पहले जो मोर खुश हो कर नाच रहा था अब वह दुखी हो कर रोने लगता है। उसे रोते देख कर मोरनी उसके आंसुओं को अपनी चोंच में लेने लगती है और मोर को समझाती है कि जो होना था वो हो चुका है अब उसके लिए दुखी होने से क्या फायदा! लेकिन मोर के आंसू नहीं रुकते मोरनी की चोंच से आंसू की बूंदें उसके पेट में उतरने लगती हैं। उनका इतना अथाह प्रेम देख कर भगवान श्री हरि विष्णु वहां प्रकट होते हैं और उन्हें वरदान देते हुए कहते हैं कि तुम दोनों का प्रेम देख कर मैं बहुत प्रसन्न हूं और तुम्हें वरदान देता हूं कि जब कभी भी मोर के रोने पर मोरनी उसके आंसुओं को अपनी चोंच में लेकर पी लेगी वो गर्भवती हो जायेगी। 

श्री हरि विष्णु मोर को आशीर्वाद देते हैं और कहते हैं कि तुम्हारे इन सुनहरे मोर पंख को मैं अपने मुकुट में धारण करूंगा जब मैं कृष्ण अवतार लूंगा। यह सुनकर मोर बहुत खुश हो जाता है और अपनी पत्नी मोरनी के झूमकर नाचने लगता है। उसके बाद वो दोनों वापस अपने पुराने स्थान पर लौट जाते हैं और खुशी खुशी अपना जीवन व्यतीत करने लगते हैं। 

दोस्तों इस कहानी से हमें ये सीख मिलती है कि जहां प्रेम होता है, जहां एक दूसरे की भावनाओं की कद्र होती है वहां पर लक्ष्मी जी का वास होता है। धन की कमी कभी भी नहीं होती है। जहां पर लड़ाई, झगड़ा होता है वहां पर कभी भी लक्ष्मी का वास नहीं होता है।मोर और मोरनी की कहानी हमें प्रेम करना सिखाती है।
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