भाद्रपद मास(भादों) में कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को अजा एकादशी कहा जाता है। हिन्दू धर्म में एकादशी व्रत का बहुत ही महत्व है। साल भर में 24 एकादशी होती हैं। हर माह में दो एकादशी होती हैं, एक शुक्ल पक्ष की और एक कृष्ण पक्ष की। एकादशी के व्रत में भगवान विष्णु जी की पूजा अर्चना की जाती है। सारी एकादशियों का अलग अलग महत्व है। अजा एकादशी व्रत को करने से अश्वमेघ यज्ञ के बराबर फल प्राप्त होता है। इस दिन व्रत कथा पढ़ने या सुनने से श्री हरि विष्णु मनुष्य के सभी कष्टों को दूर कर देते हैं। एकादशी का व्रत करने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
एकादशी व्रत कथा
प्राचीन काल की बात है। एक बहुत ही दानी और प्रतापी राजा थे, उनका नाम हरिश्चंद्र था। राजा हरिश्चंद्र धर्म को मानने वाले और सत्यवादी थे। राजा हरिश्चंद्र के राज्य में हर तरफ खुशहाली थी और सारी प्रजा राजा से बहुत प्यार करती थी। समय बीतने के साथ राजा हरिश्चंद्र का विवाह हुआ और कुछ समय पश्चात उनको एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। राजा हरिश्चंद्र की सत्यवादिता और प्रसिद्धि से देवों के राजा इंद्र को भी उनसे जलन होती थी। एक दिन भगवान इंद्र ने मुनिराज विश्वामित्र को राजा हरिश्चंद्र की परीक्षा लेने के लिए कहा। देवराज इंद्र के कहने पर मुनि विश्वामित्र राजा हरिश्चंद्र की परीक्षा लेने को तैयार हो गए।
ऋषि विश्वामित्र ने परीक्षा लेने के लिए राजा हरिश्चंद्र को एक सपना दिखाया जिसमें उन्होंने अपना सारा राज्य ऋषि विश्वामित्र को दान में दे दिया है। परंतु सुबह जब राजा हरिश्चंद्र सो कर उठे तो सपने की बात भूल गए। उसके बाद ऋषि विश्वामित्र महल में पहुंच कर राजा हरिश्चंद्र को उनका सपना याद दिलाते हैं, तो राजा हरिश्चंद्र खुशी खुशी अपना सारा राज–पाठ ऋषि विश्वामित्र को दान कर देते हैं। परन्तु दान देने के बाद जब ऋषि विश्वामित्र ने दक्षिणा मांगी तो राजा ने कहा कि अब तो मेरे पास कुछ भी नहीं है लेकिन दक्षिणा देना जरूरी था तो उन्होंने अपने पुत्र को और पत्नी को एक चांडाल के यहां बेच दिया। राजा हरिश्चंद्र को भी श्मशान के स्वामी ने खरीद लिया। परिस्थिति विपरीत होने पर भी राजा हरिश्चंद्र ने सत्य को नहीं छोड़ा।
राजा हरिश्चंद्र की पत्नी चांडाल के घर चौका बर्तन का काम करने लगीं और किसी समय सिंहासन पर बैठने वाले राजा हरिश्चंद्र कफन बेचने का काम करने लगे। इसी प्रकार उसे कई वर्ष बीत गए। राजा हरिश्चंद्र को अपने इस नीच कार्य को करने के लिए बहुत दुख होता था। वह हमेशा यही सोचा करते कि कैसे इस नीच कार्य को करने से मुक्त हो पाऊंगा।
एक समय की बात है, राजा इसी चिंता में डूबे हुए थे तभी वहां गौतम ऋषि आ पहुंचे। राजा हरिश्चंद्र ने उन्हें प्रणाम करके आदर सत्कार किया और गौतम ऋषि के पूछने पर अपनी दुखभरी कहानी ऋषि को सुना दी। उनके दुख को जानकर गौतम ऋषि भी बहुत व्यथित हो गए। गौतम ऋषि ने राजा से कहा कि हे राजन्! तुम भादों मास में पड़ने वाली अजा एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करो और रात्रि जागरण करो। इस व्रत के प्रभाव से तुम्हारे सारे कष्ट दूर हो जायेंगे। गौतम ऋषि की बात मान कर भादों मास में राजा हरिश्चंद्र ने अजा एकादशी का विधिपूर्वक व्रत और पूजन किया तथा रात्रि जागरण किया। अजा एकादशी व्रत को करने से और उसकी कथा श्रवण करने से राजा को कष्ट से छुटकारा मिल गया और उसके समस्त पाप नष्ट हो गए।
राजा हरिश्चंद्र को उनकी पत्नी और पुत्र भी वापस मिल गए। उसी समय स्वर्ग में नगाड़े बजने लगे और आसमान से पुष्पों की वर्षा होने लगी। व्रत के प्रभाव से राजा हरिश्चंद्र को उनका राज्य पुनः वापस मिल गया। राजा हरिश्चंद्र ने धर्म का पालन करते हुए अपने राज्य को चलाया और अंत समय में अपने परिवार सहित स्वर्गलोक को प्रस्थान किया। इसी प्रकार जो मनुष्य अजा एकादशी व्रत को करता है और कथा को पढ़ता या सुनता है उसके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होती है।