Kartik Maas Mahatmya Katha Teesra Adhyay

कार्तिक मास माहात्म्य कथा तीसरा अध्याय 


भगवान श्री कृष्ण की बात सुनकर सत्यभामा ने कहा: हे प्रभु! आप तो सभी काल में व्यापक हैं और सभी काल आपके आगे एक समान हैं, फिर यह कार्तिक मास ही सभी मासों में श्रेष्ठ क्यों है? आप सब तिथियों में एकादशी और सभी मासों में कार्तिक मास को ही अपना प्रिय क्यों कहते हैं! इसका कारण बताइए। इसपर भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि हे भामिनी! तुमने मुझसे बहुत अच्छा प्रश्न किया है, मैं तुम्हे इसका उत्तर देता हूं तुम ध्यानपुर्वक सुनो! 

एक समय की बात है कि एक बार महाराज बेन के पुत्र राजा पृथु ने प्रश्न के उत्तर में देवर्षि नारद जी से प्रश्न किया था और जिसका उत्तर देते हुए नारद जी ने उसे कार्तिक मास की महिमा बताते हुए कहा: हे राजन्! एक समय शंखासुर नाम का एक राक्षस बहुत बलवान और अत्याचारी हो गया था। उसके अत्याचारों से तीनों लोकों में त्राहि–त्राहि मच गई। उस शंखासुर ने स्वर्ग में निवास करने वाले देवताओं पर विजय प्राप्त कर इंद्रादि देवताओं एवं लोकपालों के अधिकारों को छीन लिया।

उधर जब शंखासुर को इस बात का पता चला कि देवता आनंदपूर्वक सुमेरु पर्वत की गुफाओं में निवास कर रहे हैं, तो उसने सोचा कि ऐसी कोई दिव्य शक्ति अवश्य है जिसके प्रभाव से अधिकारहीन ये देवता अभी भी बलवान हैं। सोचते–सोचते वह इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि शायद वेदमन्त्रों के बल के कारण ही देवता बलवान हो रहे हैं। यदि इनसे वेद छीन लिए जाएं तो वह सब बलहीन हो जाएंगे। ऐसा विचार करने के बाद शंखासुर शीघ्र ही ब्रह्मा जी के सत्यलोक से वेदों को हर लाया। उसके द्वारा ले जाए जाते हुए भय से वेद उसके चंगुल से निकल भागे और जल में समा गए। शंखासुर ने वेदमन्त्रों और बीजमंत्रों को ढूंढते हुए सागर में प्रवेश किया परन्तु ना तो उसको वेद मंत्र मिले और ना ही बीजमंत्र।

जब शंखासुर सागर से निराश हो कर वापस लौटा तो उसके बाद ब्रह्माजी पूजा की सामग्री लेकर सभी देवताओं के साथ भगवान श्री विष्णु जी की शरण में पहुंचे और भगवान श्री विष्णु जी को गहरी निंद्रा से जगाने के लिए गाने–बजाने लगे और धूप–गन्ध आदि से उनका पूजन करने लगे। धूप, दीप, नैवेद्य आदि अर्पित किए जाने पर भगवान श्री विष्णु जी की निंद्रा टूटी और  सभी देवताओं सहित ब्रह्माजी को अपना पूजन करते  हुए देखकर वह बहुत प्रसन्न हुए और कहने लगे कि मैं आप लोगों के इस कीर्तन और मंगलाचरण से बहुत प्रसन्न हूं, आप मुझसे अपना अभीष्ट वरदान मांगिए मैं अवश्य प्रदान करूंगा। जो मनुष्य आश्विन मास शुक्ल पक्ष की एकादशी से देवोत्थान एकादशी तक ब्रह्ममुहुर्त में उठकर मेरी पूजा करेंगे उन्हें तुम्हारी ही भांति मेरे प्रसन्न होने के कारण सुख की प्राप्ति होगी।

आप लोग जो पाद्य, अर्घ्य, आचमन और जल आदि सामग्री मेरे लिए लाए हैं, वह अनंत गुणों वाली होकर आपका कल्याण करेगी। शंखासुर द्वारा हारे गए संपूर्ण वेद जल में स्थित हैं। मैं सागर पुत्र शंखासुर का वध कर के उन वेदों को अभी लाए देता हूं। आज से मंत्र–बीज और वेदों के साथ मैं प्रतिवर्ष कार्तिक मास में जल में विश्राम किया करूंगा। अब मैं मत्स्य का रूप धारण करके जल में जाता हूं। तुम सब देवता भी मुनीश्वरों सहित मेरे साथ में आओ। इस कार्तिक मास में जो श्रेष्ठ मनुष्य प्रातःकाल स्नान करते हैं वे सब यज्ञ के अवभृथ–स्नान द्वारा भली–भांति नहा लेते हैं। 

हे देवेन्द्र! कार्तिक मास में व्रत करने वालों को सब प्रकार से धन, पुत्र–पुत्री आदि देते रहना और उनकी सभी आपत्तियों से रक्षा करना। हे धनपति कुबेर! मेरी आज्ञा के अनुसार तुम उनके धन–धान्य की वृद्धि करना क्योंकि इस प्रकार का आचरण करने वाला मनुष्य मेरा रूप धारण कर के जीवन मुक्त हो जाता है। जो मनुष्य जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त विधिपूर्वक इस उत्तम व्रत को करता है, वह आप लोगों के लिए भी पूजनीय है। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को तुम लोगों ने मुझे जगाया है इसलिए यह तिथि मेरे लिए अत्यंत ही प्रीतिदायिनी और माननीय है। 

हे देवताओं! यह दोनों व्रत नियमपूर्वक करने से मनुष्य मेरा सानिध्य प्राप्त कर सकते हैं। इन व्रतों को करने से जो फल मिलता है वह अन्य किसी भी व्रत से नहीं मिलता है, अतः प्रत्येक मनुष्य को सुखी और निरोगी रहने के लिए कार्तिक माहात्म्य और एकादशी व्रत की कथा सुनते हुए उपयुक्त नियमों का पालन करना चाहिए।
Share: