यमदूत कहने लगा कि हे विकुंडल! तुमने बहुत सुन्दर बात पूछी है। यद्यपि मैं पराधीन हूं परन्तु मैं तुम्हारे स्नेह को देखते हुए अपनी बुद्धि के अनुसार तुम्हे बतलाता हूं। जो मनुष्य काया, वाचा और मनसा से कभी दूसरों को दुःख और कष्ट नहीं देते हैं वे लोग यमलोक में नहीं जाते। हिंसा करने वाले, यज्ञ, वेद, तप और दान करने से भी उत्तम गति को नहीं पाते हैं। अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है। जो मनुष्य जल या पृथ्वी पर रहने वाले जीवों को अपने भोजन के लिए मारते हैं वे मनुष्य कालसूत्र नामक नर्क में पड़ते हैं। वहां पर वे अपना मांस खाते हैं और रक्त पीप पान करते हैं और अनेक कष्टों को भोगते हैं। इस कारण इस लोक तथा परलोक में सुख की इच्छा रखने वाले मनुष्य को काया, वाचा और मन में दूसरों को नुकसान पहुंचाने के बारे में नहीं सोचना चाहिए।
जो मनुष्य हिंसा नहीं करते हैं उनको किसी भी प्रकार का भय नहीं होता है। जिस तरह से टेढ़ी और सीधी दोनों प्रकार की नदियां समुन्द्र में मिल जाती हैं ठीक उसी प्रकार सब धर्म अहिंसा में प्रवेश कर जाते हैं। ब्रह्मचारी, गृहस्थ, वानप्रस्थी तथा यति सभी व्यक्ति अपने धर्म का पालन करने और जितेंद्रिय रहकर ब्रह्मलोक को प्राप्त होते हैं। जो मनुष्य जलाशय आदि बनाते हैं और सदैव पांचों यज्ञ करते हैं वे यमपुरी को नहीं जाते। जो मनुष्य इन्द्रियों के वशीभूत नहीं हैं और जो वेदवादी तथा नित्य ही हवन आदि करते हैं वे स्वर्ग को जाते हैं।
यमदूत कहने लगा कि युद्धभूमि में जो शुरवीर मर जाते हैं वे सूर्यलोक को प्राप्त होते हैं। जो अनाथ, स्त्री, शरण में आए हुए मनुष्य तथा ब्राह्मण की रक्षा के लिए प्राण दे देते हैं वह कभी भी स्वर्ग से नहीं लौटते। जो मनुष्य लूले–लंगड़े, अनाथ, वृद्ध तथा गरीबों की मदद और उनका पालन करते हैं वे भी स्वर्ग में जाते हैं। जो मनुष्य गायों के लिए पानी का आश्रय करते हैं और कुआं, तालाब और बावड़ी बनवाते हैं वे सदा ही स्वर्ग में निवास करते हैं। जैसे–जैसे जीव इनमें पानी पीते हैं वैसे–वैसे उनका धर्म बढ़ता जाता है। जल से ही मनुष्य के प्राण हैं इसलिए जो लोग प्याऊ आदि लगवाते हैं वे लोग अक्षय स्वर्ग को प्राप्त होते हैं। बड़े–बड़े यज्ञ भी फल नहीं देते हैं जो अधिक छाया वाले पेड़ मार्ग में लगाने से देते हैं
जो मनुष्य वृक्षारोपण करता है वह सदा ही दानी और यज्ञ करने वाला होता है। जो मनुष्य अच्छे फल और अच्छी छाया देने वाले वृक्ष को काटता है वह नरक में जाता है। तुलसी का पौधा लगाने वाला मनुष्य सब पापों से छूट जाता है। जिस घर में तुलसी का पौधा होता है वह घर तीर्थ के समान होता है। उस घर में कभी यमदूत नहीं आते। तुलसी की सुगन्ध से पितरों का चित्त आनंदित हो जाता है। वे विमान में बैठकर विष्णुलोक को जाते हैं। नर्मदा नदी का दर्शन, गंगा स्नान और तुलसीदल का स्पर्श यह सभी बराबर –बराबर फल देने वाले हैं। हर एक द्वादशी को ब्रह्मा जी भी तुलसी का पूजन करते हैं।
रत्न, सोना फूल और मोती की माला के दान का इतना महत्व है जितना तुलसी की माला के दान का है। जो फल आम के हजार और पीपल के सौ वृक्ष लगाने से मिलता है वह तुलसी
के एक पौधे को लगाने से मिलता है। पुष्कर आदि तीर्थ, गंगा आदि नदी, वासुदेव आदि देवता सब ही तुलसी में वास करते हैं। जो मनुष्य एक बार, दो बार या फिर तीन बार रेवा नदी से उत्पन्न शिव मूर्ति की पूजा करता है अथवा स्फुटिक रत्न के पत्थर से आप निकले हुए, तीर्थ अथवा वन में रखी हुई शिव जी की प्रतिमा की पूजा करता है और सदैव ॐ नमः शिवाय का जाप करता है। यमलोक की कथा भी नहीं सुनता। शिव पूजा के समान पापों को नष्ट करने वाला, कीर्ति देनेवाला तीन लोक में दूसरा कोई कार्य नहीं है।
जो मनुष्य शिवालय बनवाते हैं वे शिवलोक को जाते हैं। ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव का मन्दिर बनाकर बैकुंठवासी होता है। जो भगवान की पूजा के लिए फलों और फूलों के बाग लगाते हैं वे मनुष्य धन्य होते हैं। जो मनुष्य अपने माता–पिता, देवताओं और अतिथियों का सदैव पूजन और आदर करते हैं वे मनुष्य ब्रह्मलोक को प्राप्त होते हैं।