Magh Maas Mahatmya Katha Barahwan Adhyay .

माघ मास माहात्म्य कथा बारहवां अध्याय।

यमदूत कहने लगा कि हे वैश्य! जो कोई प्रसंगवश भी एकादशी के व्रत को कर लेता है वह कभी भी दुखों को प्राप्त नहीं होता है। माघ मास की दोनों एकादशी भगवान पघनाभ के दिन हैं। जब तक मनुष्य इन दिनों में व्रत नहीं करता उसके शरीर में पाप बने रहते हैं। मनुष्य द्वारा किए गए हजारों अश्वमेघ, सैकड़ों वाजपेयी यज्ञ, एकादशी व्रत की सोलहवीं कला के बराबर भी नहीं है। एकादशी के दिन व्रत करने से ग्यारह इन्द्रियों से किए गए सब पाप नष्ट हो जाते हैं। गंगा, काशी, यमुना, गया, पुष्कर, कुरूक्षेत्र, चंद्रभागा कोई भी एकादशी के बराबर नहीं है। इस दिन व्रत करके मनुष्य अनायास ही बैकुंठ को प्राप्त कर लेता है। 


एकादशी को व्रत और रात्रि जागरण करने से माता–पिता, स्त्री के कुल की दस–दस पीढ़ियों का उद्धार हो जाता है और वह मनुष्य पीतांबरधारी होकर भगवान के निकट रहता है। इस व्रत को करने से बाल, युवा, और वृद्ध तथा पापी भी नर्क में नहीं जाते। यमदूत कहने लगा कि हे वैश्य! अब मैं सूक्ष्म में तुमसे नर्क से बचने का धर्म कहता हूं। मन, कर्म और वचन से प्राणिमात्र का द्रोह ना करना, इन्द्रियों को वश में रखना, दान देना, भगवान की सेवा करना, नियमपूर्वक वर्णाश्रम धर्म का पालन करना, इन कर्मों के करने से मनुष्य नर्क से बचा रहता है। 

स्वर्ग प्राप्त करने की इच्छा से मनुष्य अगर गरीब भी हो तो जूता–चप्पल, छतरी, अन्न, जल, धन आदि का दान करते रहना चाहिए। दान देने वाला मनुष्य कभी यम की यातना को नहीं भोगता और हमेशा दीर्घायु बना रहता है। उसे कभी धन की कमी नहीं होती है। अधर्मी मनुष्य सदा ही बुरी गति को प्राप्त होता है। मनुष्य सदैव धर्म के कार्यों को करने से स्वर्ग लोक को प्राप्त कर सकता है। इसलिए मनुष्य को बाल्यावस्था से ही धर्म के कार्यों को करने का अभ्यास करना चाहिए।

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