श्री वशिष्ठ जी कहने लगे कि हे राजन्! अब मैं माघ मास के उस माहात्म्य को सुनाता हूं जो जो कार्तवीय के पूछने पर दत्तात्रेय जी ने सुनाया था–जिस समय साक्षात विष्णु जी के रूप दत्तात्रेय जी सत्य पर्वत पर रहा करते थे। उस समय महिष्मति के राजा सहस्रार्जुन ने उनसे पूछा कि हे योगियों में श्रेष्ठ श्री दत्तात्रेय जी! मैने सब धर्म सुन लिए है अब कृपा करके आप मुझे माघ मास के माहात्म्य को सुनाइये। तब दत्तात्रेय जी कहने, कि जो माघ मास का माहात्म्य नारद जी से ब्रह्मा जी ने कहा था वही माहात्म्य मैं तुम्हे सुनाता हूं।
माघ मास में जिसने भी माघ स्नान नहीं किया उसका जन्म निष्फल हो गया। भगवान की प्रसन्नता, पापों के नाश के लिए और स्वर्ग की प्राप्ति के लिए माघ स्नान जरूर करना चाहिए। यदि ये शुद्ध और पुष्ट शरीर माघ स्नान के बिना ही रह जाए तो इसकी रक्षा करने से क्या लाभ! जल में बुलबुल के समान, मक्खी जैसे तुच्छ जंतु के समान यह शरीर माघ स्नान के बिना मरण समान है। भगवान विष्णु की पूजा ना करने वाला ब्राह्मण, बिना दक्षिणा के श्राद्ध, ब्राह्मण रहित क्षेत्र, आचार रहित कुल यह सब नाश के बराबर हैं।
गर्व से धर्म का नाश होता है, क्रोध से तप का, गुरुजनों की सेवा ना करने से स्त्री तथा ब्रह्मचारी का, बिना जली अग्नि से हवन और बिना साक्षी के मुक्ति का नाश हो जाता है। जीविका के लिए कहने वाली कथा, अपने ही लिए बनाए गए भोजन की क्रिया, शूद्र से भिक्षा लेकर किया हुआ यज्ञ तथा कंजूस का धन, यह सब नाश के कारण हैं। बिना अभ्यास और आलस्य वाली विद्या, असत्य वाणी, विरोध करने वाला राजा, जीविका के लिए तीर्थयात्रा, जीविका के लिए व्रत, व्याकुल हो कर जप करना, वेद को ना जानने वाले को दान देना, श्रद्धा बिना धार्मिक क्रिया करना यह सब कुछ व्यर्थ है। जिस तरह से दरिद्र का जीना व्यर्थ है ठीक उसी प्रकार से माघ स्नान के मनुष्य का जीवन भी व्यर्थ है। माघ स्नान करने से मदिरा पीने वाला, ब्रह्मघाती, गुरु–पत्नीगामी और इस सब की संगति करने वाला मनुष्य भी पवित्र हो जाता है।
ऋषि वशिष्ठ जी ने कहा कि –जल कहता है कि सूर्योदय से पहले जो मनुष्य मुझमें स्नान करता है, मैं उसके बड़े से बड़े पाप को नष्ट कर देता हूं। जब माघ मास के स्नान का समय आता है तो सब पाप अपने नाश के भय से कांपने लगते हैं। जैसे मेघों से मुक्त हो कर चन्द्रमा प्रकाश करता है, ठीक वैसे ही श्रेष्ठ मनुष्य भी माघ मास में स्नान करके प्रकाशमान हो जाते हैं। मनसा, काया, वाचा से किए हुए छोटे या बड़े, पुराने या नए सभी पाप स्नान करने से नष्ट हो जाते हैं। आलस्यवश जो भी पाप किए गए हों वे भी नाश हो जाते हैं। जिस प्रकार जन्म–जन्मांतर के अभ्यास से आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति होती है उसी प्रकार से जन्मांतर अभ्यास से ही माघ स्नान में मनुष्य की रुचि होती है। यह अपवित्रों को पवित्र करने वाला बड़ा तप और संसार रूपी कीचड़ को धोने की पवित्र वस्तु है।
ऋषि वशिष्ठ जी ने कहा कि हे राजन्! जो मनुष्य मनवांछित फल देने वाले माघ स्नान को नहीं करते, वह सूर्य और चन्द्र के समान भोगों को कैसे भोग सकते हैं।