Magh Maas Mahatmya Katha Chatha Adhyay.

माघ मास माहात्म्य कथा छठा अध्याय।
दत्तात्रेय जी कहने लगे कि हे राजन्! सतयुग के उत्तम निषेध नाम के नगर में एक धनी वैश्य रहता था उसका नाम हेमकुंडल था। वह वैश्य अच्छे कार्य करने वाला, देवता और अग्नि तथा ब्राह्मण की पूजा करने वाला था। वह खेती का काम करता था और गौ, घोड़े, भैंस आदि का पालन करता था। वह वैश्य दूध, दही, छाछ, घास, गोबर, चीनी और गुड आदि अनेकों वस्तुएं बेचा करता था। ये सारे काम करके उसने बहुत सारा धन इकट्ठा कर लिया था। जब वह वैश्य बूढ़ा हो गया तो अपनी मृत्यु को निकट समझकर उसने धर्म के काम करने शुरू कर दिए। 
उसने भगवान विष्णु जी का मन्दिर बनवाया। कुआं, बावड़ी, तालाब आदि बनवाए और आम, पीपल के पेड़ साथ सुन्दर बगीचे लगवाए। वह वैश्य सूर्योदय से सूर्यास्त तक दान करता रहता था। गांव के चारो तरफ उसने जल की प्याऊ लगवाई। अपने जीवन में उसने जितने भी पाप किए थे उनका प्रायश्चित करता रहता था। इस प्रकार से उसके घर में दो पुत्रों का जन्म हुआ। उसने उन दोनों बालकों का नाम कुण्डल और विकुंडल रखा।

जब दोनों बालक बड़े हो गए तो हेमकुंडल गृहस्थी का सब कार्य उन दोनों को सौंपकर तपस्या करने वन में चला गया। वन में भगवान विष्णु जी की आराधना करने के बाद अंत में हेमकुंड विष्णु लोक को प्राप्त हुआ। उसके दोनों पुत्र धन को पाकर बुरे कर्म करने लगे। वे दोनों वीणा और बाजे लेकर वेश्याओं के साथ गाते फिरते थे। अच्छे सुन्दर वस्त्र पहनकर, सुगंधित तेल और इत्र लगाकर, भांड और खुशामद करने वालों से घिरे हुए हाथी की सवारी करते थे। वे दोनों सुन्दर घरों में रहते थे। वह दोनों अपने पिता द्वारा कमाए धन को बुरे कार्यों में नष्ट करते थे। वह ना तो कभी किसी को दान देते थे और ना ही कभी हवनऔर ना ही पूजा पाठ करते थे। वह वैश्य पुत्र ना ही कभी ब्रह्मा जी की सेवा करते थे और ना ही कभी विष्णु जी का पूजन करते थे।

इसी प्रकार बुरे कार्यों को करने के कारण उनका सारा धन नष्ट हो गया। वह दोनों भाई दरिद्रता को प्राप्त होकर अत्यंत दुःखी हो गए। उनकी इस दशा के कारण भाई, जन, सेवक, उपजीवी सब इनको छोड़कर चले गए। इस प्रकार दरिद्र होने पर उन लोगों ने चोरी आदि करना आरम्भ कर दिया। जब यह बात राजा के कानों तक पहुंची तो वह दोनों राजा के डर से नगर को छोड़कर डाकुओं के साथ वन में जाकर रहने लगे। वहां पर वे दोनों वन के पक्षी, हिरन आदि पशु तथा हिंसक जानवरों को मारकर खाने लगे। इसी प्रकार से अपना जीवन यापन कर रहे दोनों में से एक को सिंह मारकर खा गया और दूसरे को वन में काले सर्प के डसने से मृत्यु को प्राप्त हो गए। तब यमराज के दूत उन दोनों को बांधकर यम के पास ले गए और कहने लगे कि हे यमराज! इन दोनों पापियों के लिए क्या आज्ञा है? 

आगे का भाग सातवें अध्याय में पढ़ें 🙏
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