Magh Maas Mahatmya Katha Choudahwan Adhyay

माघ मास माहात्म्य कथा चौदहवां अध्याय।


कार्तवीय जी कहने लगे कि हे दत्तात्रेय जी! किस प्रकार से एक वैश्य माघ स्नान के पुण्य से पापों से मुक्त होकर दूसरे के साथ स्वर्ग को चला गया सो मुझे विस्तारपूर्वक बतलाइए। तब दत्तात्रेय जी कहने लगे कि जल का स्वभाव निर्मल, उज्ज्वल, शुद्ध, मलनाशक और पापों को धोने वाला होता है। जल सभी प्राणियों का शोषण करता है, ऐसा वेदों में कहा गया है। मकर के सूर्य माघ मास में गौ के पैर के डूबने लायक जल में भी स्नान करने से मनुष्य स्वर्ग को प्राप्त होता है। 

मनुष्य यदि सारा माघ मास स्नान करने से असमर्थ हो तो तीन दिन ही स्नान करने से पापों का नाश हो जाता है। जो मनुष्य थोड़ा सा भी दान कर देता है वह धनी और दीर्घायु हो जाता है। मनुष्य यदि पांच दिन स्नान करता है तो वह चन्द्रमा के समान शोभायमान हो जाता है। इसलिए अपना भला चाहने वाले मनुष्यों को माघ से बाहर स्नान करना चाहिए। दत्तात्रेय जी बोले कि अब मैं आपसे माघ मास में स्नान करने वालों के नियम कहता हूं –जो मनुष्य माघ मास में स्नान करते हैं उन्हें भूमि पर सोना चाहिए, अधिक भोजन का उपयोग नहीं करना चाहिए, भगवान की त्रिकाल पूजा करनी चाहिए। ईंधन, वस्त्र, कम्बल, जूता, कपास, रुई तथा अन्न का दान करना चाहिए। 

एकादशी के नियम में माघ स्नान का उद्यापन करें। ब्राह्मणों को भोजन कराकर उन्हें दक्षिणा दें। उसके बाद भगवान से प्रार्थना करें कि हे देव! इन स्नानों का मुझे यथोक्त फल दीजिए। मौन रहकर कर मंत्र का उच्चारण करें। भगवान का स्मरण करें। जो मनुष्य गंगा जी में माघ मास में स्नान करते हैं वे चार हजार वर्ष तक स्वर्ग से नहीं गिरते। जो कोई भी माघ मास में गंगा और यमुना में स्नान करता है, वह प्रतिदिन हजार कपिल गाय के दान का फल पाता है।
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