यमदूत कहने लगा कि हे वैश्य! मनुष्य को सदैव शालिग्राम की शिला में या वज्र में भगवान वासुदेव का पूजन करना चाहिए क्योंकि सब पापों का नाश करने वाले, सब पुण्यों का फल देने वाले, मुक्ति प्रदान करने वाले भगवान श्री विष्णु जी का इसमें वास होता है। जो मनुष्य भगवान शालिग्राम की शिला या हरीचक्र में पूजा करता है वह अनेक मंत्रों का फल प्राप्त कर लेता है। जो फल देवताओं को निर्गुण ब्रह्म की उपासना से मिलता है वही फल मनुष्य को भगवान शालिग्राम का पूजन करने से मिलता है। भगवान शालिग्राम का पूजन करने वाला मनुष्य कभी भी यमलोक को नहीं देखता। भगवान श्री विष्णु जी को लक्ष्मी जी के पास अथवा बैकुंठ में इतना आनंद नहीं मिलता जितना कि शालिग्राम की शिला या हरीचक्र में निवास करने से प्राप्त होता है।
मनुष्य को इतना फल स्वर्ण कमल युक्त करोड़ों शिवलिंग का पूजन करने से नहीं मिलता जितना कि एक दिन शालिग्राम का पूजन करने से मिलता है। जो मनुष्य भक्तिपूर्वक शालिग्राम का पूजन करता है वह विष्णुलोक में वास करके चक्रवर्ती होता है। मनुष्य काम, क्रोध, मोह, लोभ, अहंकार से युक्त होकर भी शालिग्राम का पूजन करने से बैकुंठ में वास करता है। जो मनुष्य सदैव शालिग्राम का पूजन करते हैं वे प्रलयकाल तक स्वर्ग में वास करते हैं।
जो मनुष्य दीक्षा, नियम और मंत्रों से चक्र में बलि देता है , वह निश्चय ही विष्णुलोक को प्राप्त होता है। जो शालिग्राम के जल से अपने शरीर का अभिषेक करता है वह मानों समस्त तीर्थों में स्नान करता है। गंगा, रेवा, गोदावरी सब नदियों का जल शालिग्राम में वास करता है। जो मनुष्य शालिग्राम की शिला के सम्मुख अपने पिता का श्राद्ध करता है उसके पितर कई कल्प तक स्वर्ग में वास करते हैं। जो लोग नित्य शालिग्राम की शिला का जल पीते हैं , उनके हजारों बार पंचगव्य पीने का क्या प्रयोजन है।
यदि शालिग्राम की शिला का जल पिया जाए तो सहस्त्रों तीर्थ करने से क्या लाभ? जहां शालिग्राम होते हैं वह स्थान तीर्थ स्थान के समान ही होता है। वहां पर किए गए दान–होम, करोड़ों गुना फल को प्राप्त होता है। जो मनुष्य एक बूंद भी शालिग्राम का जल पीता है वह माता के स्तनों का दुग्ध पान नहीं करता अर्थात् कभी भी गर्भाशय में नहीं आता है। शालिग्राम शिला में जो कीड़े–मकोड़े एक कोस के अंतर पर मरते हैं वह भी बैकुंठ को प्राप्त होते हैं। जो फल वन में तप करने से प्राप्त होता है वही फल भगवान का स्मरण करने से प्राप्त होता है।
मोहवश अनेक प्रकार के पाप करने वाला मनुष्य भी भगवान को प्रणाम करने से नर्क में नहीं जाता है। संसार में जितने भी तीर्थ और पुण्य स्थान हैं, केवल भगवान का नाम लेने मात्र से प्राप्त हो जाते हैं।