Magh Maas Mahatmya Katha Nauwan Adhyay.

माघ मास माहात्म्य कथा नौवां अध्याय।

यमदूत कहने लगे कि हे विकुंडल! मध्याह्न के समय आया हुआ कोई भी व्यक्ति चाहे वह मूर्ख हो या पंडित, वेदपाठी हो या पापी ब्रह्मा के समान होता है। जो रात्रि के समय थके हुए और भूखे ब्राह्मण को अन्न–जल देता है, मध्यान्ह के समय जिसके घर आया हुआ अतिथि निराश होकर नहीं जाता है वह स्वर्गलोक का वासी होता है। अतिथि के बराबर कोई धन–संपत्ति नहीं है। बहुत से राजा और मुनि अतिथि सत्कार से ही ब्रह्मलोक को प्राप्त हुए हैं। 

जो मनुष्य एक समय आलस्य में ही अतिथि सत्कार कर उसे भोजन करा देता है वह कभी भी यम का द्वार नहीं देखता है। केशरी ध्वज से वैवस्वत देव ने कहा था कि जो कोई इस कर्मभूमि मृत्युलोक से स्वर्गलोक जाने की इच्छा रखता हो, वह अन्न का दान करे। दूत कहने लगा कि यमराज कहते हैं कि अन्न के बराबर दूसरा और कोई दान नहीं है। जो मनुष्य गर्मियों में जल, सर्दी में ईंधन का दान करते हैं वह कभी भी यम के दुःख नहीं उठते हैं। जो मनुष्य अपने किए गए पापों का प्रायश्चित करता है वह कभी भी नर्क को नहीं देखता और प्रायश्चित ना करने वाला मनुष्य नर्क को प्राप्त होता है। जो व्यक्ति काया, वाचा और मन से अपने किए हुए पापों का प्रायश्चित करता है वह देव और गंधर्वों से शोभित स्वर्गलोक को प्राप्त होता है।

जो नित्य ही जप–तप, व्रत और तीर्थ करते हैं और जितेंद्रिय हैं वह कभी भयंकर यम को नहीं देखते हैं। नित्य धर्म करने वाला दूसरे का अन्न, भोजन और दान त्याग दे। नित्य स्नान करने से बड़े से बड़े पाप नष्ट हो जाते हैं। बिना स्नान पवित्रता कैसे हो सकती है? जो मनुष्य पर्व के समय चलते हुए जल में स्नान करते हैं, वह कभी भी बुरी योनि में नहीं जाते हैं और ना ही नरक में जाते हैं। माघ मास में स्नान करने वाले मनुष्यों को नियमपूर्वक तिल, पात्र और तिल कमल का दान करना चाहिए। यमदूत कहने लगे कि हे विकुंडल! पृथ्वी, गौ, सोना, चांदी आदि का दान करने वाला मनुष्य कभी भी स्वर्ग से वापस नहीं लौटता। बुद्धिमान व्यक्ति पुण्य तिथियों, संक्रांति आदि को थोड़ा सा भी दान करके भी बुरी गति को प्राप्त नहीं होता है। 

सत्यवादी, मौन रहने वाला, मीठे वचन बोलने वाला, क्षमाशील, नीतिवान, किसी की बुराई ना करने वाला, सब प्राणियों पर दया करने वाला, पराए धन को तृण समझने वाला मनुष्य कभी भी नर्क को नहीं भोगता है।


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