दत्तात्रेय जी कहने लगे कि हे राजन्! अब मैं एक प्राचीन समय का इतिहास तुम्हे सुनाता हूं। भृगुवंश में ऋषिका नाम की एक ब्राह्मणी रहती थी जो कि बाल्यावस्था में ही विधवा हो गई थी। वह ब्राह्मणी रेवा नदी के किनारे विंध्याचल पर्वत के नीचे तपस्या करने लगी। वह ब्राह्मणी जितेंद्रिय, सुशील, सत्य बोलने वाली, दानशील तथा तप करके देह को सुखाने वाली थी। वह अग्नि में आहुति देकर उच्छवृत्ति (विद्या अध्ययन के लिए मिलने वाली धनराशि) द्वारा छठे काल में भोजन करती थी और संतोष से अपना जीवन यापन करती थी। उस ब्राह्मणी ने रेवा नदी और कपिल नदी के संगम में साठ साल तक माघ स्नान किया और फिर वहीं पर मृत्यु को प्राप्त हो गई।
माघ मास में स्नान के फल से वह ब्राह्मणी दिव्य चार हजार वर्ष तक विष्णु लोक में वास करके सुंद और उपसुन्द दैत्यों का नाश करने के लिए ब्रह्मा द्वारा तिलोत्तमा नाम की अप्सरा के रूप में ब्रह्मलोक में उत्पन्न हुई। वह बहुत रूपमती, गान विद्या में अति प्रवीण तथा मुकुट कुण्डल से शोभायमान थी। उसके रूप और यौवन को देखकर ब्रह्मा जी भी चकित रह गए थे। वह तिलोत्तमा रेवा नदी के पवित्र जल में स्नान करके वन में बैठी हुई थी। उसी समय सुन्द और उपसुन्द के सैनिकों ने चंद्रमा के समान उस रूपवती को अपने राजा सुन्द और उपसुन्द से जाकर उसके रूप की शोभा का वर्णन किया। सैनिक कहने लगे कि हे महाराज! कामदेव को भी लज्जित करने वाली ऐसी परम सुन्दरी स्त्री को हमने आज तक नहीं देखा है।
सैनिकों ने कहा कि महाराज आप भी चलकर एक बार उस रूपवती को देखें। सैनिकों की बात सुनकर वह दोनों मदिरा के पात्र रखकर वहां पर पहुंचे जहां पर वह सुन्दरी बैठी हुई थी। उसको देखकर मदिरा के पीने की वजह से काम–क्रीड़ा से पीड़ित होकर दोनों आपस में ही उस स्त्री–रत्न को प्राप्त करने के युद्ध करने लगे और फिर युद्ध करते हुए वहीं समाप्त हो गए। राजा सुन्द और उपसुन्द को मरा हुआ देखकर उनके सैनिकों ने बहुत कोलाहल मचाया। उसके बाद तिलोत्तमा कालरात्रि के समान उनको पर्वत से गिराती हुई दसों दिशाओं को प्रकाशमान करती हुई आकाश में चली गई और देव कार्य सिद्ध करके ब्रह्मा जी के सामने आई। उसको देखकर ब्रह्मा जी ने बहुत ही प्रसन्नता के साथ कहा कि हे चन्द्रवती! मैंने तुमको सूर्य के रथ पर स्थान दिया। जब तक आकाश में सूर्य स्थित है तुम नाना प्रकार के भोगों को भोगो।
श्री दत्तात्रेय जी कहने लगे कि हे राजन्! वह ब्राह्मणी अब भी सूर्य के रथ पर माघ मास स्नान के उत्तम भोगों को भोग रही है। इसलिए श्रद्धावान मनुष्यों को उत्तम गति पाने के लिए माघ मास में विधिपूर्वक स्नान करना चाहिए।