दत्तात्रेय जी बोले कि हे राजन्! अब तुम आगे की कथा सुनो–प्रजापति ने पापों के नाश के लिए प्रयाग तीर्थ की रचना की, गंगाजी और यमुना जी के जल की धारा में स्नान करने का माहात्म्य भली–भांति सुनो। जो मनुष्य इस संगम में माघ मास में स्नान करता है वह दोबारा गर्भ योनि में नहीं आता है। श्री हरि विष्णु जी की दुर्गम माया माघ मास में प्रयाग तीर्थ में सब कुछ नष्ट कर देती है।
दत्तात्रेय जी कहने लगे कि हे राजन्! माघ मास में प्रयाग में स्नान करने से मनुष्य अच्छे भोगों को भोग कर ब्रह्म को प्राप्त होता है। माघ मास तथा मकर के सूर्य में जो भी प्रयाग में स्नान करता है उसके पापों की गिनती भगवान चित्रगुप्त जी भी नहीं कर सकते। सौ वर्ष तक निराहार रहकर जो पुण्य प्राप्त होता है वही फल माघ मास में तीन दिन प्रयाग में स्नान करने से मिलता है। जो कि सौ वर्ष तक योगाभ्यास करने से प्राप्त होता है। जैसे सर्प पुरानी केंचुली को छोड़कर नई केंचुली ग्रहण कर लेता है उसी प्रकार माघ मास में स्नान करने से मनुष्य पापों को छोड़कर स्वर्ग को प्राप्त होता है, परन्तु गंगा–जमुना के संगम में स्नान करने से हजारों गुना फल प्राप्त होता है।
हे राजन्! जिसको अमृत कहते हैं वह त्रिवेणी ही है। ब्रह्मा, शिव, रुद्र, आदित्य, मरुतगण, गंधर्व, लोकपाल, यक्ष, गुह्यक, किन्नर, अणिमादि गुणों से सिद्ध, तत्वज्ञानी, ब्राह्मणी, पार्वती, लक्ष्मी, शची, नैना, दिति, अदिति, सम्पूर्ण देव पत्नियां और नागों की स्त्रियां, घृताची, मेनका, उर्वशी, रंभा, तिलोत्तमा, अप्सरा गण और सब पितर, मनुष्य गण, कलियुग में गुप्त और सतयुगादि में प्रत्यक्ष सब देवता माघ मास में त्रिवेणी में स्नान करने के लिए आते हैं।
दत्तात्रेय जी बोले कि हे राजन्! इन दिनों में माघ मास में प्रयाग में स्नान करने से जो पुण्य तथा फल मिलता है वह केवल ईश्वर ही कह सकता है। मनुष्य में उसके फल को कहने की शक्ति नहीं है। हजारों अश्वमेघ यज्ञ करने से भी वह फल प्राप्त नहीं होता है। पूर्व समय में कांचन मालिनी ने इस स्नान का फल एक राक्षस को दिया था जिसकी वजह से वह पापी मुक्त हो गया था।