श्री दत्तात्रेय जी कहने लगे कि चित्रगुप्त ने उन दोनों के कर्मों की आलोचना करते हुए दूतों से कहा कि तुम लोग बड़े भाई कुण्डल को घोर नरक में डालो और छोटे भाई विकुंडल को स्वर्ग में ले जाओ। वहां पर बहुत उत्तम भोग हैं। चित्रगुप्त जी के ऐसा कहने पर एक दूत कुण्डल को नरक में फेंकने के लिए ले गया और दूसरा दूत विकुंडल से बड़ी नम्रता से कहने लगा कि हे विकुंडल! तुम मेरे साथ स्वर्ग को चलो , वहां चलकर तुम अपने अच्छे कर्मों के कारण अनेक प्रकार के सुखों को भोगो। दूत की बात सुनकर विकुंडल ने बहुत आश्चर्य के साथ दूत से पूछा कि हे यमदूत! मेरे मन में बड़ी शंका उत्पन्न हो रही है, इसलिए मैं आपसे कुछ पूछना चाहता हूं कृपा करके मेरे प्रश्नों का उत्तर दो। विकुंडल ने कहा कि हम दोनों भाई एक ही कुल में पैदा हुए, एक जैसे ही कर्म करते रहे और दोनों भाइयों ने कभी भी कोई शुभ कार्य भी नहीं किया है। विकुंडल ने पूछा कि हे यमदूत! तो फिर एक को नरक और दूसरे को स्वर्ग किस कारण से प्राप्त हुआ?
विकुंडल बोला कि मैं अपने स्वर्ग में आने का कोई कारण नहीं देखता। विकुंडल के इस प्रकार की बात सुनकर यमदूत कहने लगा कि हे विकुंडल! माता–पिता, पुत्र, भाई–बहन, पत्नी से सब सम्बन्ध जन्म के कारण होते हैं। मनुष्य का जन्म कर्म को भोगने के लिए ही होता है। जिस प्रकार एक वृक्ष पर अनेक पक्षियों का आगमन होता है। उसी प्रकार इस संसार में पुत्र, भाई–बहन, माता–पिता का भी संगम होता है। जो मनुष्य जैसे कर्म करता है वह वैसे ही फल को भोगता है। तुम्हारा भाई अपने पाप कर्म की वजह से नरक में गया और तुम अपने पुण्य कर्मों की वजह से स्वर्ग लोक को जा रहे हो।
तब चकित हो कर विकुंडल ने यमदूत से पूछा कि हे यमदूत! मैने तो अपने जीवन में कभी भी कोई धर्म का काम नहीं किया है। मैं तो सदैव ही पापों में ही लगा रहा हूं। मैने क्या पुण्य कर्म किए हैं जिसको मैं नहीं जानता , यदि तुम मेरे द्वारा किए गए पुण्य कर्मों को जानते हो तो कृपा करके मुझे उसके बारे में बताओ। उसके इस प्रकार से पूछने पर यमदूत कहने लगा कि हे विकुंडल! मैं सब प्राणियों को भली–भांति जनता हूं तुम नहीं जानते।तो सुनो मैं तुम्हे तुम्हारे पुण्य कर्मों के बारे में बताता हूं।
सुमित नाम का एक ब्राह्मण था, उसके पिता का नाम हरिमित्र था। उसका आश्रम नदीबके किनारे दक्षिणोत्तर दिशा में था। सुमित के साथ जंगल में तुम्हारी मित्रता हो गई थी। उसके साथ तुमने दो बार माघ मास में श्री यमुना जी में स्नान किया था। पहली बार स्नान करने से तुम्हारे सारे पाप नष्ट हो गए थे और दूसरी बार माघ मास में स्नान करने से तुम्हे स्वर्ग की प्राप्ति हुई है। इस प्रकार से तुमने दो बार माघ मास में स्नान किया उसी के पुण्य से तुमको स्वर्ग प्राप्त हुआ और तुम्हारे भाई को नरक प्राप्त हुआ है। श्री दत्तात्रेय जी कहने लगे कि इस प्रकार भाई के दुखों के बहुत दुःखी होकर नम्रतापूर्वक मीठे वचनों से दूतों से कहने लगा कि हे दूतों! सज्जन पुरुष के साथ सात पग चलने से मित्रता हो जाती है और यह कल्याणकारी होती है। हे मित्र! प्रेम की चिन्ता ना करते हुए तुम मुझको इतना बताने की कृपा करो कि कौन से कर्म करने से मनुष्य यमलोक को प्राप्त नहीं होता है। क्योंकि तुम सब जानते हो!