मौनी अमावस्या
मौनी अमावस्या के दिन पवित्र नदियों में स्नान करना बहुत शुभ और फलदायी माना जाता है। शास्त्रों में मौनी अमावस्या का विशेष महत्व बताया गया है। मौनी अमावस्या के दिन भगवान शिव जी और विष्णु जी की पूजा करने का विधान है। इस अमावस्या के दिन स्नान करने और दान देने का बहुत ही ज्यादा महत्व होता है। अमावस्या का दिन पितर देवताओं को समर्पित माना जाता है।जो मनुष्य मौनी अमावस्या का व्रत करता है उसे अवश्य ही इस कथा को सुनना या पढ़ना चाहिए।
मौनी अमावस्या व्रत कथा
बहुत समय पहले की बात है, कांचीपुरी नाम का एक नगर था। उस नगर में देवस्वामी नाम का एक ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी का नाम धनवती था। देवस्वामी के सात पुत्र तथा एक बेटी थी। उसकी पुत्री का नाम गुणवती था। ब्राह्मण ने अपने सातों बेटों की शादी कर दी थी। जब गुणवती विवाह योग्य हुई तो ब्राह्मण ने सुयोग्य वर ढूंढने के लिए अपने सबसे बड़े बेटे को भेजा। शादी के लिए जब गुणवती की कुंडली एक पंडित को दिखाई गई तो उस पंडित ने बताया कि विवाह होते ही गुणवती विधवा हो जाएगी। यह सुनकर ब्राह्मण और ब्राह्मणी बहुत दुःखी हो गए। उन्होंने पंडित से उसके दोष को दूर करने का उपाय पूछा तो पंडित ने बताया कि सोमा धोबन का पूजन करने से यह दोष दूर हो सकता है। अगर गुणवती के विवाह से पहले सोमा धोबन आपके घर आकर पूजन करे और आशीर्वाद दे तो यह दोष दूर हो जाएगा। ब्राह्मण के पूछने पर पंडित ने सोमा धोबन के बारे में बताया कि सोमा धोबन सिंहल द्वीप में रहती है।
पंडित जी की बात सुनकर देवस्वामी का छोटा पुत्र अपनी बहन को लेकर सिंहल द्वीप जाने के लिए सागर तट पर गया। वहां पहुंचकर दोनों भाई–बहन सागर पार करने की चिन्ता में एक पेड़ के नीचे बैठ गए और बातें करने लगे। जिस पेड़ के नीचे दोनों बैठे हुए थे, उस पेड़ पर एक गिद्ध का घोंसला था। उस घोंसले में गिद्ध अपने बच्चों के साथ रहता था। गिद्ध के बच्चे उन दोनों की बातें ध्यान से सुन रहे थे। उन दोनों को वहां बैठे–बैठे शाम हो गई। शाम को जब गिद्ध के बच्चों की मां लौटकर आई तो अपने बच्चों को भोजन करने के लिए कहा तो उन्होंने भोजन नहीं किया। गिद्ध के बच्चों ने अपनी मां से कहा कि पहले पेड़ के नीचे बैठे उन दोनों प्राणियों को भोजन कराओ और उनकी समस्या का निवारण करो।
गिद्ध के बच्चों ने अपनी मां से वचन लिया कि वह उन दोनों भाई–बहनों की समस्या का निवारण करेंगी, उसके बाद गिद्ध के बच्चों ने अपना भोजन किया। अगले दिन गिद्ध की मदद से दोनों भाई–बहन सिंहल द्वीप पहुंच गए। वहां पहुंचकर उन दोनों को सोमा धोबन का घर भी आसानी से मिल गया। इस प्रकार से वहां पर रहते हुए दोनों भाई–बहन सोमा धोबन को प्रसन्न करने की योजना बनाने लगे। दोनों ने सोचा कि हम सोमा धोबन के उठने से पहले उसके घर को साफ कर दिया करेंगे। इस प्रकार वह दोनों रोजाना सुबह जल्दी उठ कर सोमा धोबन के घर को झाड़कर लीप देते थे। जब सोमा धोबन उठती तो साफ–सुथरे घर को देखकर हैरान रह जाती।
एक दिन सोमा धोबन ने अपनी बहुओं से पूछा कि उसके उठने से पहले घर को कौन बुहारता है और लीपता है। सोमा की प्रशंसा पाने के लिए उसकी बहुओं ने झूठ बोल दिया कि वे ही घर की साफ–सफाई और लीपा–पोती करती हैं। लेकिन सोमा धोबन को उनकी बात पर विश्वास नहीं हुआ। उसने सोचा कि वह इस बात का पता लगाएगी कि कौन उसके घर की लीपापोती और झाड़पोंछ करता है। एक दिन सुबह जल्दी उठकर सोमा धोबन ने गुणवती और उसके भाई को घर की सफाई करते हुए देख लिया। सोमा ने उनसे इस तरह से उसके घर की लीपापोती और झाड़पोंछ करने का कारण पूछा तो उन दोनों ने सोमा धोबन को पूरी बात बता दी।
उन दोनों भाई–बहन की बात सुनकर सोमा धोबन ने उनकी मदद करने का फैसला किया और बोली मैं तुम दोनों पर बहुत प्रसन्न हूं, और उचित समय आने पर वह उनके घर पहुंच जाएगी। परन्तु भाई–बहन के आग्रह करने पर सोमा उन दोनों के साथ चल दी। घर से चलते समय सोमा ने अपनी बहुओं से कहा कि यदि मेरी अनुपस्थिति में किसी का देहांत हो जाए तो उसके शरीर को नष्ट नहीं करना और मेरे आने का इंतजार करना। बहुओं को समझाने के बाद सोमा धोबन दोनों भाई–बहन के साथ कांचीपुरी पहुंच गई। उसके पहुंचने के दूसरे दिन गुणवती के विवाह का कार्यक्रम शुरू हो गया। सप्तपदी होते ही गुणवती का पति मर गया। सोमा ने तुरन्त अपने संचित पुण्यों का फल गुणवती को प्रदान कर दिया। उसके बाद गुणवती ने भगवान विष्णु जी की पूजा कर पीपल के पेड़ की 108 बार परिक्रमा की, जिसके बाद गुणवती का पति जीवित हो गया। सोमा धोबन उन दोनों को सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद देकर अपने घर लौट गई।
इधर सोमा धोबन के घर पर गुणवती को अपना पुण्य–फल देने के करना सोमा के पुत्र और पति की मृत्यु हो गई। सोमा ने पुण्य फल संचित करने के लिए रास्ते में पीपल की छाया में श्री विष्णु जी का पूजन करके 108 बार परिक्रमा की। उसके बाद सोमा धोबन के घर उसका पुत्र और पति पुनः जीवित हो गए।इस लिए प्रत्येक मनुष्य को माघ मास में मौनी अमावस्या के दिन स्नान करना चाहिए और कथा श्रवण करनी चाहिए।