Magh Maas Mahatmya Katha chabbiswa Adhyay.

माघ मास माहात्म्य कथा छब्बीसवां अध्याय।

पथिक कहने लगा कि हे प्रेत! तुमने सारस के वचन किस प्रकार और क्या सुने थे सो मुझे विस्तारपूर्वक कहो। प्रेत कहने लगा कि इस वन में कुहरा नाम की नदी पर्वत से निकली है। मैं जब घूमता हुआ उस नदी के किनारे पर पहुंचा तो थकावट दूर करने के लिए वहीं पर ठहर गया। मैंने देखा कि एक उसी समय एक लाल–लाल मुख और तीखे दांतों वाला बंदर वृक्ष से उतर कर वहां पर आया जहां पर सारस सोया हुआ था। उस बंदर ने बहुत सारे पक्षियों को देखा और उस सोए हुए सारस को मजबूती से पैरों में पकड़ लिया। यह देखकर सब के सब पक्षी उड़कर वहां से चले गए। सबको जाता हुआ देखकर सारसी वहीं पर रुककर तेजी से विलाप करने लगी। नींद से जागकर जब सारस ने बंदर को देखा तो अत्यंत मधुर वाणी में कहने लगा कि हे बंदर! तुम बिना अपराध मुझको क्यों दुख दे रहे हो? इस संसार में राजा भी केवल अपराधियों को ही दंड देता है, निअपराध को नहीं।

सारस कहने लगा कि हे बंदर! तुम्हारे जैसे श्रेष्ठ प्राणी कभी किसी को पीड़ा नहीं देते। हम अहिंसक और दूसरे के कर्मों को नहीं देखते। जल की काई को खाने वाले, आकाश में उड़ने वाले, वन में रहने वाले, अपनी पत्नी से प्रेम करने वाले, दूसरों की स्त्री को त्यागने वाले, दूसरों की बुराई से दूर रहने वाले, चोरी–चकारी ना करने वाले, बुरे व्यक्तियों की संगति ना करने वाले, किसी को कष्ट ना देने वाले हैं। इसलिए हे बंदर तुम मुझ निअपराधी को छोड़ दो। मैं तुम्हारे पूर्व जन्म के वृत्तांत को जानता हूं। सारस की बात सुनकर बंदर उसको छोड़कर दूर जाकर बैठ गया। बंदर कहने लगा कि हे सारस! तुम मेरे पूर्व जन्म के वृत्तांत को कैसे जानते हो? 

बंदर कहने लगा कि तुम एक अज्ञानी पक्षी हो और मैं वन में घूमने वाला हूं। सारस कहने लगा कि मैं अपनी जाति की स्मृति के बल से तुम्हारे पूर्व जन्म का वृतांत जानता हूं। तुम पूर्व जन्म में विंध्य पर्वत के राजा थे। मैं उस जन्म में तुम्हारे कुल का पुरोहित था। तुम राजा होकर अपनी प्रजा को कष्ट दिया करते थे। विवेकहीन होकर तुमने बहुत सा धन इक्कठा किया। सो हे वानर! प्रजा की पीड़न रूपी अग्नि की ज्वाला से तुम पहले ही तप चुके हो। पहले तुम कुम्भीपाक नरक में गिराए गए। तुम्हारे शरीर को नरक में तीन हजार वर्ष बीत गए थे। उसके बाद तुम नरक से मुक्त होकर तुमने अपने बचे हुए पापों के कारण तुम इस बंदर की योनि में जन्म लिया है और अब तुम मुझे मारना चाहते हो। पूर्व जन्म में तुमने ब्राह्मण के बाग से लूटकर फल खाए थे। जिसकी वजह से तुम इस जन्म में वानर और वनवासी हुए हो। प्राणी अवश्य ही अपने द्वारा किए गए कर्मों को भोगता है। इसको देवता भी नहीं हटा सकते। इस प्रकार से मैं सारस का जन्म लेकर भी अज्ञान से मोहित नहीं हुआ हूं।

इतनी कथा सुनकर बंदर कहने लगा कि यदि तुम सब जानते हो तो ये बताओ कि तुम पक्षी कैसे हुए? सारस कहने लगा कि हे बंदर! मेरी दुर्गति का कारण भी सुनो! तुमने नर्मदा नदी के किनारे पर सूर्य ग्रहण के दौरान बहुत से ब्राह्मणों के निमित्त सौ ढेर अन्न के दान किए थे। मैंने पुरोहिताई के मद में थोड़ा सा अन्न ब्राह्मणों को दिया और बाकी सब अन्न मैं अपने घर ले गया। इन ब्राह्मणों को अन्न न देने की वजह से मैं कालसूत्र नामक नरक को प्राप्त हुआ। उसके बाद रक्त कर्दूम नरक में जहां बड़े–बड़े कीड़े थे। मैं उस दुर्गन्ध वाले नरक में उन कीड़ों द्वारा काटा गया तीन हजार वर्षों तक उस यातना को भोगता रहा। 

सारस कहने लगा कि हे वानर! मैं उस नरक के दुख का वर्णन नहीं कर सकता। मैंने नरक की यातना से मुक्त होकर यह सारस का जन्म पाया, क्योंकि पूर्व जन्म में अपनी बहन के घर से कांसे का बर्तन चुराया था। इसको मैंने एक जुआरी को दिया। इसी कारण मैं सारस की योनि में आया। मेरी पत्नी पिछले जन्म में ब्राह्मणी थी। उसने भी कांसे की चोरी की थी इसी वजह से वह इस जन्म में मेरी पत्नी बनी और सारसी हुई। यह सब मैंने तुमसे कर्म फल कहा। अब तुम भविष्य की बात भी सुनो। अब मैं, तुम और मेरी पत्नी हंस होंगे और कामरूप देश में सुख से निवास करेंगे। उसके पश्चात् गौर योनि में और फिर जाकर दुर्लभ मनुष्य योनि को प्राप्त होंगे। इसमें मनुष्य पाप और पुण्य दोनों ही कर सकता है। इस प्रकार शिव जी की माया से यह सारा जगत मोह को प्राप्त होता है।

केवल हम ही नहीं परन्तु इस संसार के सभी जीव प्रवृत्ति मार्ग में फंसकर अच्छे और बुरे कर्म करते हैं और उनका फल भोगते हैं। इसीलिए सब प्राणियों को धर्म का पालन करना चाहिए। देवता, असुर, मनुष्य, व्याघ, कीड़े–मकोड़े सभी से कंटक रूपी मार्ग नहीं छूटता है। केवल वेदांत जानने वाले योगी ही इस मार्ग से बच सकते हैं। बड़े–बड़े महात्मा भी कर्म फल को टाल नहीं सकते हैं। उपाय से तथा बुद्धि से कोई भी इसको बदल नहीं सकता है। तुम पहले राजा थे। फिर नरक में गए। अब बंदर की योनि पाकर वन में फिरते हो और फिर ऐसा ही जन्म पाओगे।  

इसलिए ऐसा विचार कर आनंदपूर्वक और धैर्य के साथ विचरते हुए काल की प्रतीक्षा करो। तब बंदर ने कहा कि पिछले जन्म में मैं तुम्हारी पूजा किया करता था। अब तुम मुझको प्रणाम करते हो। तुम जाति के स्मरण से ही मेरे पूर्व जन्म के वृत्तांत को जानते हो। तुम आनंदपूर्वक रहो, तुम्हारा कल्याण हो। तुम्हारे वचनों को सुनकर मैं मोहरहित होकर वन में विचरुंगा।

प्रेत कहने लगा कि हे पथिक! मैंने नदी के तट पर बंदर और सारस का यह संवाद सुना तब मुझको बोध हुआ और मोह तथा शोक का नाश हुआ।
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